For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शहर के बड़े चैराहे पर

जो बड़ी दीवार है

उसके पास से गुजरते हुए

अक्सर मन होता है

लिख दूं उस पर

‘लोकतंत्र’

लाल स्याही से।

 

एक बड़ा लाल चमकता हुआ

‘लोकतंत्र’

जो दूर से साफ चमके।

 

जब भी होता हूं वहां

कांव कांव करता एक कौआ

आ बैठता है दीवार पर

मानो आहवाहन करता हो

‘आंव, आंव

लिख दो इस दीवार पर

जग जाएं पशु, पक्षी, लोग

ढूंढकर निकाली जा सके

फाइलों और योजनाओं के

बोझ तले दबी जनता’।

 

कभी कभी हाथ उठते भी हैं

लेकिन कायर दिमाग

अनुमति नहीं देता।

 

दिमाग याद करता है

जब एक कवि ने

कोशिश की थी पहले

‘लोकतंत्र’ लिखने की

इसी दीवार पर।

अभी लिख ही पाया था ‘ल’

कि मिटा दी गयी इबारत

पोत दी गयी दीवार

झक सफेद रंग से।

वह कवि

तब से गायब है।

           - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 772

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सानी करतारपुरी on July 4, 2013 at 11:16pm

आदरणीय  वर्तमान को खूब सफलता से  चित्रित किया है.. बधाई 

Comment by MAHIMA SHREE on July 4, 2013 at 11:11pm

बहुत सी सार्थक  समसामयिक  प्रस्तुति आदरणीय ब्रजेश  जी .. बधाई आपको ..

Comment by बृजेश नीरज on July 4, 2013 at 9:56pm

आदरणीय रविकर जी आपका हार्दिक आभार! आपको रचना पसंद आयी मेरा प्रयास सार्थक हुआ। आपने तुरंती के रूप में मेरी रचना को जो आशीष दिया है उससे बड़ा पुरूस्कार मेरे लिए क्या हो सकता है! पुनः आपका बहुत आभार!
सादर!

Comment by रविकर on July 4, 2013 at 9:51pm

मद में रिश्ते-नात, आज वर दिखे सिरी है |

Comment by रविकर on July 4, 2013 at 9:50pm

बहुत प्रभावी ढंग से विषय को प्रस्तुत किया है आपने-
बहुत बहुत बधाई आदरणीय -
एक तुरंती आप के सम्मान में पेश है-
सादर -(प्रिंटिंग की गलती हो जा रही थी बार बार)

लोकाचार विचार शुभ, लो कर लो पर बात |
लोक लोक इह लोक में, निकली तंत्र बरात |
निकली तंत्र बरात, रात घनघोर घिरी है |
मद में रिश्त-नात, आज वर दिखे सिरी है |
ला पर लाठी जोर, अक्ल वाला है बोका |
गय पानी में भैंस, लोक सिधरे परलोका -

Comment by बृजेश नीरज on July 4, 2013 at 9:23pm

आदरणीय सौरभ जी आपका हार्दिक आभार! आपको रचना पसंद आयी मेरा प्रयास सार्थक हुआ।
सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 4, 2013 at 8:52pm

सशक्त .. .

व्यवस्था की विसंगतियों से झल्लाया मन चाहता तो बहुत है लेकिन विवशता ढोने को अभिशप्त है.

ज़िन्दग़ी को चूसती अमरबेलें कई रूपों में हैं जो खुल कर लहराने नहीं देतीं.

बहुत बहुत बधाई, भाई.. .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
Wednesday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service