"क्या लिखूं? "
ये सोच कर शुब्भु का दिमाग और दिल बहुत तेज रहा था. वह कॉलेज की जानी मानी वक्ता थी. जब भी कोई फंक्शन होता या कोई भी विचार गोष्ठी, श्ब्भु को अपना नाम नही देना पड़ता था। उसके साथ स्वमेव ही उसका नामांकन करा देते। शुब्भु को घर बैठे गृहकार्य भी मिल जाता, की राजीव का ब्रेक अप हो गया है तो दिल टूटने की कविता लिखनी है। शैलजा, आशुतोष को प्रपोस करना चाहती है तो उसे अपिलिंग लाइन्स लिख के देनी है। और न जाने कितने आयोजन ख़त्म होते तो बिना शुब्भु को बुलाये ये असम्भव ही न होता।
शब्दों की धनी शुब्भु को अचानक एक बड़ी पत्रिका से नियमित एक स्थान मिला लिखने को। पत्रिका नामी थी, इसलिए शुब्भु का उत्साहित होना लाजिमी था।
खूब सोच सोच के शुब्भु हार रही थी, फूलों पर लिखे या प्रेम पर, रिश्तों पर लिखे या आतंकवाद पर, नैतिकता पर लिखे या भृष्टाचार पर?
शुब्भु को विषय का अभाव नही था, बल्कि उसके पास इतने सारेविषय थे की उनमे से एक चुनना मुश्किल हुए जा रहा था।
जाने क्या सोच के वह खुश होती हुयी सो गयी। रात में अचानक बहुत आवाज सुनाई दी। उठ कर देखा तो मम्मी पापा और भाई सभी घर के बाहर और भी कॉलोनी के लोगों के साथ सडक पे खड़े थे।
"क्या हुआ?" उसने माँ के पीछे जा कर धीरे से पूछा।
"बसंत भैया की वाइफ सीता ने आज फाँसी लगा ली" माँ ने बताया ।
"क्या?" अवाक् हो के रह गयी शुब्भु!!
अक्सर ही जब शुब्भु कॉलेज से घर आती तो उसी समय वह सीता भाभी को माँ के पास से वापस जाती हुयी मिलती। और जब माँ से पूछती की सीता भाभी क्यों आई थी तो मालूम पड़ता की फिर से आज उसे बसंत भैया ने बुरी तरह से पीटा है जाने किन कारणों से तो केवल सीता भाभी शुब्भु की माँ को अपने घाव दिखाने और दवा के लिए कुछ पैसे उधार ले जाने आई थी, वह उधार जो सीता ने लेते समय कहा था की जल्दी ही चुका देगी। लेकिन शुब्भु की माँ जानती थी बेचारी सीता कभी नही लौटा पायेगी। और सचमुच सीता आज बिना अपना उधार लौटाए वापस दूसरी दुनिया में लौट गयी थी। बंसत को गिरफ्तार करने पुलिस पहुँच गयी थी।
और शुब्भु को ख्याली विषयों से दूर एक विषय मिल चुका था अपने नियमित अंक के लिए।
और वह था "स्त्री विमर्श"!
शुभांगना सिद्धि
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
विषय सराहना के लिए आभार
आदरणीय लक्ष्मण जी,
आदरणीय बृजेश जी,, आदरणीय अशोक कुमार जी,
आदरनीय बृजेश जी, चाहती हूँ की आसपास की घटनाएँ, दीदियों के, भाभिओं के और सहेलियों के साथ हो रहे अत्याचार जो देखती हूँ, कुछ कर नही पाती, मन मसोस कर रह जाती हूँ. इसलिए इस मंच के माध्यम से छुपे हुए तथ्य उजागर करने की एक कोशिश करना चाहती हूँ.
आभार, आपने आत्मबल दिया.
सुन्दर लघुकथा आदरणीया
स्त्री विमर्श! सच में अच्छा विषय है लेकिन वास्तविकता में यह लिखने भर की ही चीज रह गयी है। इस विषय को जितने गम्भीर प्रयास की जरूरत है वह करता कोई नहीं दिखता।
बहरहाल, आपका ताना बाना सुन्दर है। Punctuation का भी ध्यान रखें लिखते समय तो अच्छा रहेगा।
आपको इस प्रयास पर बहुत बहुत बधाई!
सादर!
और शुब्भु को ख्याली विषयों से दूर एक विषय मिल चुका था अपने नियमित अंक के लिए।
और वह था "स्त्री विमर्श"!---------पूरी रचना के सारांश कहे या यूँ कहे कहानी का सुन्दर समापन | हार्दिक बधाई
धन्यवाद आदरणीया प्राची जी!
धन्यवाद आदरणीय सौरभ जी!
स्त्री विमर्श ... बहुत सही विषय चुना.
सादर शुभकामनाएं
सुन्दर प्रयास हुआ है शुभांगनाजी. अच्छा ताना-बान बुना है आपने.
बधाई
धन्यवाद आदरणीय रविकर जी
उड़ी फर्श से अर्श तक, करिए नारि-विमर्श -
समालोचना सत्यता, नर-नारी उत्कर्ष ||
आभार
अच्छा विषय-
शुभकामनायें आदरेया
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