दिल से सुन ओ भाई ....
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किसी की किस्मत पर जलने वालों के
दिलों को ठंडक कहाँ मिलती है,
किस्मत के धनी को इनकी परवाह भी कहाँ होती है.
देख उस खुदा की तरफ जिसने जहाँ बनाया...
तुझे और मुझे खाली हाथ यहाँ भिजवाया.
सद-कर्म से तू मर्म और धर्म का ईमान रख
अपने पे भरोसा कर, नेकी की राह चल.
बुलंदी के रास्ते तो खुद-ब खुद खुल जायेंगे
जलता रहा गर यूँ ही अगर
मातम के दरवाज़े पीढ़ी दर पीढ़ी खुल जायेंगे.
- दिनेश
शुभ प्रभात
अप्रकाशित और स्वरचित
दिनेश सोलंकी
Comment
आ0 दिनेश भाई जी, वाह! बहुत ही सुन्दर रचना। बधाई स्वीकारें। सादर,
किसी की किस्मत पर जलने वालों के
दिलों को ठंडक कहाँ मिलती है,
किस्मत के धनी को इनकी परवाह भी कहाँ होती है............सुंदर रचना.
दिनेश भाई बहुत अछा लिखा है .
सुंदर रचना................
सुंदर प्रस्तुतिकरण....शुभकामनाऐं
अतिसुन्दर...............
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