For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पिता,परमात्मा सा होता है

पिता परमात्मा सा होता है

जो जन्म देकर दुनिया में ले आता है

वो दुनिया दिखाने वाला पिता,परमात्मा से कैसे कम है

हमारी आहट से जो सन्न हो जाता है

जिसके भीतर हर पल हमारे पालन की चिन्ता पलती है

जो हमें जन्म देने के बाद,

अपने सारे सुख भूल जाता है।।

दुनिया में हमारे आने के बाद

वो एक राह पर ही चलता है

और अपने पुरातन ताज्य कार्य भी छोड देता है

उसकी दुनिया हमारी आहट से बदल जाती है

वो पिता परमात्मा सा होता है।।

                                                 सूबे सिंह सुजान

मौलिक  व  अप्रकाशित 

Views: 594

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सूबे सिंह सुजान on June 16, 2013 at 4:30pm

 vijayashree........... आपका आभार,,,,,,आपने अपने विचारों से अवगत कराया.........धन्यवाद...........

Comment by सूबे सिंह सुजान on June 16, 2013 at 4:28pm

 coontee mukerji....जी , आपका आभार,,,,,,आपने अपने विचारों से अवगत कराया.........धन्यवाद

Comment by सूबे सिंह सुजान on June 16, 2013 at 4:28pm

बृजेश नीरज......ji,,आपकी बात से सहमत हूँ गद्यात्मक से बचना चाहिये..........और मैं बचता भी हूं ......यह कभी-कभार होजाता है

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 14, 2013 at 11:52pm
आदरणीय..सुजान जी, माता पिता ईश्वर से भी बड़े होते हैं, उनकी महिमा सर्वोपरि है ।सुंदर प्रस्तुतिकरण ...शुभकामनाऐं
Comment by vijayashree on June 14, 2013 at 8:57pm

माता -पिता के बारे में जितना भी लिखा जाए ..कम ही लगता है ...

सुंदर रचना /बधाई

Comment by coontee mukerji on June 14, 2013 at 1:17am

बहुत सुंदर सुजान जी /सादर / कुंती

Comment by बृजेश नीरज on June 12, 2013 at 10:18pm

आदरणीय सुजान जी,
माता पिता की महिमा जितनी गायी जाए उतनी कम है। आपको इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।
आपसे एक निवेदन है कि अतुकांत लिखते समय कृपया गद्यात्मकता से बचने का प्रयास करना चाहिए।
सादर!

Comment by सूबे सिंह सुजान on June 11, 2013 at 10:42pm

Rajesh Kumar Jha....जी............आपकी प्रस्तुति सही है

अहत पुरुष जारे पितु-माता,तिसपर कन्‍यादान विधाता

चास करे औ फसल चराए, ठूंठ चूस मन को समझाए

Comment by सूबे सिंह सुजान on June 11, 2013 at 10:41pm

Shyam Narain Verma..........जी स्वागत

Comment by राजेश 'मृदु' on June 11, 2013 at 6:18pm

बिल्‍कुल सच लिखा है आपने । एक पिता अपने दायित्‍व को वहन करते हुए अर्धनारीश्‍वर ही होता है । कुछ पंक्तियां पिता के लिए मेरी तरफ से यूं हैं

' अहत पुरुष जारे पितु-माता,तिसपर कन्‍यादान विधाता

चास करे औ फसल चराए, ठूंठ चूस मन को समझाए

सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service