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परिपक्वता और नादानीयाँ

धर्म-मजहब के नाम पर,

तुम लड़ सकते हो, मैं नहीं

अपने शब्दों की नुमाइश बेहतर,

तुम कर सकते हो, मैं नहीं

.

मैं.............. मैं क्या कर सकता हूँ ???

मैं तो बस....

.

मैं तो आज भी ले सकता हूँ

बारिश का मज़ा

गलतियाँ कर पा सकता हूँ सजा

कल्पनाओ से निखार सकता हूँ धरा

बात दिल की कहता हूँ सदा.......

.

रो कर मना सकता हूँ उन्हें

रूठ के सता सकता हूँ उन्हें

नादानियो से हँसा सकता हूँ उन्हें

क्या तुम कर सकते हो ?

.

कदाचित नहीं

 

क्योंकि परिपक्वता तुम्हारा बन्धन है 

और नादानीयाँ मेरी आज़ाद उड़ान .....

मौलिक एवं अप्रकाशित 

- सुमित नैथानी 

 

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Comment

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 8, 2013 at 9:36pm

बहुत ही सुन्दर! सुमित जी बधाई!

Comment by बृजेश नीरज on June 8, 2013 at 8:04pm

आपकी ओबीओ पर पहली रचना पढ़ी। अच्छी है! आपको बधाई आपके इस सुन्दर प्रयास पर!
आप सतत लेखन कार्य करें और टिप्पणियों के माध्यम से प्राप्त निर्देशों का पालन करें। निखार आता ही जाएगा।
सादर!

Comment by Sumit Naithani on June 8, 2013 at 3:14pm

शुक्रिया वर्मा जी 

Comment by Shyam Narain Verma on June 8, 2013 at 11:25am
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………

कृपया ध्यान दे...

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