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साथी!
जिस राह पे चलकर तुम जाते
वह राह मनचली
क्यों मुड़ के लौट नही आती ...

ये बैरन संध्या
हो जाये बंध्या
न लगन करे चंदा से
न जन्में शिशु तारे
बस यहीं ठहर जाये

ये शाम मुंहजली
जो मुड़ के लौट नही पाती ...

श्वासों के तार
ताने पल पल
न टूट  जायें
ये अगले पल
ले जाओ दरस  हमारा
दे जाओ दरस तुम्हारा
यह लिखती पत्र पठाती

यह राह मनचली
जो मुड़ के लौट नहीं पाती ...

ये राह दिवानी है
हमारे पिया गये जिस पर
न लौटे अब तक हाय
हमारा पिया हिरानी है
तेरी रज लूँ मै साथे!
मिला दे हमको पाथे
विनय सुने न हाय

हँसे जाती पगली
यह राह मनचली 
जो मुड़ के लौट नही पाती ...

तेरा गाली से श्रंगार करूं
बड़ा निठुर व्यवहार करूं
 खो दूँ तुझको
खुरपी लेकर फरुआ से
 महा प्रहार करूं
न ये न करना भोली
री! राह करे है ठिठोली
देखा तो पिया खड़े सम्मुख
वह भूल गयी सब वियोग दुःख 
ले रही बलैयाँ सैयाँ की
करती राह की कजली

यह राह मनचली
जो मुड़ के लौट यहीं आती ...

                             गीतिका 'वेदिका'   

 "मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by Abid ali mansoori on June 5, 2013 at 9:27pm
आदरणीया गीतिका जी मन को छूती सुन्दर रचना के लिए बधाई आपको!
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 5, 2013 at 9:18pm

वाह वाह आदरणीय बहुत सुन्दर प्रवाह पूर्ण शब्दों की माला पिरोई है आपने 

इस सुन्दर भावभरी प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकारें 

सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 5, 2013 at 6:19pm
आदरणीया...गीतिका जी, बहुत ही खूबसूरत रचना," ये राह दिवानी है हमारे पिया गये जिस पर, न लौटे अब तक हाय हमारा पिया हिरानी है,,तेरी रज लूँ साथें! मिला दे हमको पाथे, विनय सुने न हाय...हँसे जाती पगली यह राह मनचली, जो मुड़ के लौट नहीं पाती..."बहुत ही उम्दा पंक्तियां, बहुत खूबसूरत ..."आदरणीया हार्दिक बधाई व शुभकामनायें स्वीकार करें....
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 5, 2013 at 6:09pm

 सुन्दर रचना के लिए बधाई =

यह राह मनचली 

इसके आगे किसकी चली 

जीभ को लगती भली 

तन मन में मचती 

अनायास ही खलबली 

फिर निकाले कौन 

इसकी गली - लक्ष्मण 

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on June 5, 2013 at 5:49pm

शानदार रचना के लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये 

कृपया ध्यान दे...

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