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आशा की नवकिरण

आशा की इक नवकिरण

भर देती है संचार तन में

पंख पखेरू बन के ये मन

भर लेता है ये ऊँची उड़ान

जा पहुंचा है दूर गगन पर

पीछे छोड़ के चाँद सितारे

छू रहा है सातवाँ आसमां

गीत गुनगुनाये धुन मधुर

रच  रहा है हर पल नवीन 

सृजन निरंतर रहा है कर

झंकृत करता तार मन के

बन  जाता मानव  महान 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Rekha Joshi on June 8, 2013 at 10:47pm

हार्दिक आभार आ  विजय मिश्र

Comment by Rekha Joshi on June 8, 2013 at 10:45pm

हार्दिक आभार आ अशोक जी 

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 8, 2013 at 9:40pm

आशा की इक नवकिरण

भर देती है संचार तन में

पंख पखेरू बन के ये मन

भर लेता है ये ऊँची उड़ान........बिलकुल सही है.

आदरणीया रेखा जी सादर सुन्दर रचना सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by विजय मिश्र on June 3, 2013 at 1:09pm
आशा से बंधा ऊँची उड़ान का हौसला लिए मन फिर निरंतर सृजन -उत्कृष्ट जीवन की सुंदर परिभाषा है आपकी यह रचना .रेखाजी ! साधुवाद
Comment by बृजेश नीरज on June 1, 2013 at 10:57pm

भाव तो बहुत अच्छे हैं रचना के। मेरे सामने समस्या यह है कि मैं यह समझ नहीं पा रहा कि रचना किस विधा में है। यदि स्पष्ट कर सकें तो बहुत मेहरबानी होगी आपकी।

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