सामयिक मुद्दों पर एक नवगीत ...
रो रो कर जनता बेहाल
नेता काटें ‘मोटा माल’
साम्यवाद के पक्ष में
जितने दावे थे
सब ख़ारिज हैं
देश में अब क़ानून के मंत्री
खुद क़ानून से
आजिज हैं
सी बी आई में बैठे हैं
नेता जी के
सौ सौ लाल
रो रो कर जनता बेहाल
नेता काटें ‘मोटा माल’
न्यूज़ चैनलों में हम देखें
घोटालों का
डेली सोप
मामा भांजे के रिश्ते में
खोज रहे हैं
सब स्कोप
लंबी लंबी बातें करके
हो जाते हैं
जो मिस काल
रो रो कर जनता बेहाल
नेता काटें ‘मोटा माल’
व्यभिचारों के पैमाने से
नपता दिल्ली
का किरदार
पर संसद में अब भी होता
सख्त सजा पर
सोच विचार
दिल वालों के बस्ती शायद
नैतिकता से
है कंगाल
रो रो कर जनता बेहाल
नेता काटें ‘मोटा माल’
दारू पी कर जो बहके थे
मर कर वो
हो गए शहीद
मार के दुश्मन के कैदी को
उनको हम
देते ताकीद
गांधी जी के तीनों बन्दर
छाती पीटें
नोचें बाल
रो रो कर जनता बेहाल
नेता काटें ‘मोटा माल’
आने वाले समय को अपनी
ओर से हम
भटकाव न दें
हम पर जिम्मेदारी है अब
जाति धर्म को
भाव न दें
हर मुश्किल का हल हम खोजें
खुद ना होगा
कोई कमाल
रो रो कर जनता बेहाल
नेता काटें ‘मोटा माल’
वीनस केसरी
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
सौरभ जी, इस विस्तृत विवेचना के लिए आपका आभारी हूँ
विजय मिश्र जी शुक्रिया
विलम्ब से आना हो रहा है. किन्तु मेरी भागदौड़ की दशा से आप वाकिफ़ ही हैं.
दूसरे, ज़ल्दबाजी में इस रचना पर कुछ कहना इस प्रस्तुति के साथ न्याय करना नहीं होता. भले दो पंक्तियाँ में अपनी बात कहूँ लेकिन ठहर कर कुछ कहने का अलग ही संतोष होता है.
पहले तो आपकी रचना के लिए बधाई.
इस विधा में व्यक्तिगत भावनाओं और आपसी सम्बन्धों को अभिव्यक्त करते बिम्ब ही नहीं, आमजन को प्रभावित करते करेण्ट टॉपिक्स को भी अपने लिहाज से शामिल करना एक शुरु से होता रहा है. आपने तो आजके प्रशासन और कार्यकारिणी दोनों ही को निशाने पर लिया है. यह अवश्य है कि एक दो बंद थोड़े कंट्रोवर्सियल विन्दुओं को साझा करते हुए से हैं जिनपर सतही तौर पर कुछ कहना उचित नहीं था.
गीत की विधा और इसका तथ्य दोनों संयत है. कथ्य में थोड़ा सपाटपन है, कारण चाहे जो हो. मंच क श्रोता तो संतुष्ट हो जायेंगे लेकिन शब्द वाचन के आग्रही पाठक थोड़ा मायूस होंगे. लेकिन, सर्वोपरि, जो बात विशेष रूप से दृष्टि में आती है वह इस रचना की लम्बाई. कथ्य सहज ही दो-तीन बंदों में बिम्बों के माध्यम से या इंगितों में ढाले और बाँधे जा सकते थे.
नवगीत के बंद (अंतरे) यदि दो से अधिक तुकांत लें और उसके बाद आधार पंक्ति आती हो तो श्रेयस्कर यही होता है कि उन्हें संख्या में तीन से आगे न जाने दिया जाय, अन्यथा पाठक/श्रोता के धैर्य की परीक्षा होने लगती है.
लेकिन यह अवश्य कहूँगा कि कवि हृदय संप्रेषण हेतु चाहे जो विधा/ माध्यम अपनाये, वह संवेदनशील होगा तो विधा कोई हो कथ्य से संतुष्ट करेगा. विधाजन्य प्रयास में निरंतरता कथ्य-संप्रेषण को निखारती चलती है.
इस प्रयास हेतु हार्दिक शुभकामनाएँ.. .
धन्यवाद बृजेश जी
हार्दिक आभार
लक्षमण प्रसाद जी नवगीत को अपना स्नेह व आशीर्वाद देने के लिए धन्यवाद
अहा वीनस भाई! बहुत खूब! मजा ही आ गया पूरा! वर्तमान परिस्थितियों पर बहुत सुन्दर कटाक्ष और अंत उचित सलाह से। आपको बहुत सारी बधाई!
सुन्दर और सामयिक नवगीत के लिए बधाई श्री वीनस केसरी जी
आने वाले समय को अपनी
ओर से हम
भटकाव न दें
हम पर जिम्मेदारी है अब
जाति धर्म को
भाव न दें
हर मुश्किल का हल हम खोजें
खुद ना होगा
कोई कमाल
रो रो कर जनता बेहाल
नेता काटें ‘मोटा माल’
आदरणीय केसरी जी, आपने वर्तमान की लगभग सभी विषयों पर कलम चलायी है!
हमें सचेत होना ही होगा
नहीं तो और भी होगा बुरा हाल!...
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