For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जो जुटाते अन्न, फाकों की सज़ा उनके लिए।

बो रहे जीवन, मगर जीवित चिता उनके लिए।

 

सींच हर उद्यान को, जो हाथ करते स्वर्ग सम,

नालियों के नर्क की, दूषित हवा उनके लिए।

 

जोड़ते जो मंज़िलें, माथे तगारी बोझ धर,

तंग चालों बीच जुड़ता, घोंसला उनके लिए।

 

झाड़ते हैं हर गली, हर रास्ते की धूल जो,

धूल ही होती दवा है, या दुआ उनके लिए।

 

गाँव वालों के सभी हक़, ले गए  लोभी शहर,

सिर्फ सूनी गागरी, ठंडा तवा उनके लिए।

 

क्या पढ़ेंगे दीन कविता, गीत या कोई गजल,

भूख के भावों भरा, कोरा सफ़ा उनके लिए।

बेरहम शासन तले जो, घुट रहा है आम जन,

रहनुमाओं ने अभी तक, क्या किया उनके लिए।  

*'शहर' शब्द का वज़न हिन्दी उच्चारण के अनुसार १+२लिया है।

(मौलिक व अप्रकाशित)

  • कल्पना रामानी

 

Views: 969

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कल्पना रामानी on May 2, 2013 at 6:20pm

प्राची जी, बहुत बहुत धन्यवाद...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 2, 2013 at 5:06pm

बहुत सुन्दर गज़ल हुई है आ० कल्पना रामानी जी .. हर शेर अपने कथ्य और संवेदना से हृदय में जगह बनाने में सक्षम है...

हार्दिक बधाई 

Comment by कल्पना रामानी on May 2, 2013 at 2:33pm

मनोज जी, केवल प्रसाद जी, आपकी स्नेहपूर्ण सुंदर टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद। अब हम एक ही परिवार के सदस्य हैं, मेरे नाम के आगे कृपया आदरणीय न लगाएँ। 'जी' से स्वतः ही आदर का बोध हो जाता है। अपना सहज स्नेह बनाए रखिए...

Comment by कल्पना रामानी on May 2, 2013 at 2:25pm

वीनस जी, धीरे धीरे हर बात याद होती जाएगी। कोशिश यही रहेगी कि फिर वही भूल न हो। एक बात और...

मतले के शे'र में अगर काफिया ता, ना, नी आदि हो  तो   उससे पूर्ववर्ती शब्द अलग अलग हो सकता है या नहीं। जैसे--

कविता, कटुता     चाँदनी, रागिनी या फिर एक जैसा रखना चाहिए जैसे कविता-सरिता,रागिनी-मालिनी आदि। अभी काफिया के बारे में लेख भी पढ़ूँगी। वहाँ होगा तो मालूम हो जाएगा। इस महीने के तरही मिसरे की बहर देख ली है, तीन चार शे'र बन चुके हैं। कोशिश करूंगी कि गलती न हो, फिर भी पहली कक्षा की छात्रा हूँ, गलतियाँ स्वाभाविक हैं। यह तो समझ में आ गया कि गिरे हुए शब्द को लघु माना जाएगा, बस प्रयोग करते समय याद रहना चाहिए। आपका हार्दिक धन्यवाद...

Comment by वीनस केसरी on May 2, 2013 at 1:32pm

कल्पना जी,

यदि गए में गिर भी सकता तो दो सवतंत्र लघु बनते अर्थात ११, मात्रा बनती

जैसे कभी - १२ में भी को गिराने पर ११ बनता है| इनको जोड़ कर २ की जगह इस्तेमाल नहीं कर सकते
जैसा कि पिछली तरही में देखा गया शाश्वत २ को स्वतंत्र ११ नहीं कर सकते  उसी तरह स्वतंत्र ११ को २ नहीं किया जा सकता है 

हाँ कुछ बहर के आख़िरी रुक्न की शुरुआत में २ की जगह ११ भी स्वीकार्य है वहाँ पर ऐसे शब्दों को प्रयोग किया जा सकता है 

(मई माह के तरही मुशायरा में ऐसी ही बहार चुनी गयी है और इसके विषय में बताया गया है आप आयोजन की पोस्ट को देख सकती हैं)

विनम्र निवेदन है कि मेरे लिए आदरणीय न लगाया करें
सादर 

Comment by कल्पना रामानी on May 2, 2013 at 8:49am

आदरणीय वीनस जी, आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है। मैं सोच रही थी कि शायद 'गए'में 'ए'की मात्रा गिर सकती है। अभी मेरा लेखन कमजोर ही है। यह गलती फिर कभी नहीं होगी अभी सुधार कर दिया है। आपका हार्दिक आभार...

Comment by वीनस केसरी on May 2, 2013 at 12:38am
एक एक शेर इस औद्योगिक समाज से किया गया ऐसा प्रश्न है जिनका उत्तर अब तक केवल "मौन" मिला है और मजदूर  इस मौन से ही सारे अर्थ खोजने को मजबूर है

आक्रोश और आग को समेटे इस ग़ज़ल को मैं सलाम करता हूँ
आख़िरी शेर तक आते आते तो कलेजा मुँह को आ गया
शानदार ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद

बेरहम शासन तले जो, घुट रहा है आम जन,

रहनुमाओं ने अभी तक, क्या किया उनके लिए। 


वाह वा इस शेर के लिए अलग से बधाई

गाँव वालों के सभी हक़, छीनकर ले गए शहर,
यह मिसरा शहर को १२ मानने के बावजूद बहर से ख़ारिज हो जा रहा है, क्योकि आपने गए = मान लिया है
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 1, 2013 at 9:25pm

आ0 रामानी जी, क्या पढ़ेंगे दीन कविता, गीत या कोई गजल,
भूख के भावों भरा, कोरा सफ़ा उनके लिए।
बेरहम शासन तले जो, घुट रहा है आम जन,
रहनुमाओं ने अभी तक, क्या किया उनके लिए।.. बहुत ही सुन्दर गजल। हार्दिक आभार स्वीकारें। सादर,

Comment by बृजेश नीरज on May 1, 2013 at 8:39pm

आदरणीया कल्पना जी आपके पथ पर मैं भी आपका अनुसरण कर रहा हूं। हिन्दी का प्रचार प्रसार मेरा भी उद्देश्य है। आपकी लगन और हिन्दी प्रेम से सबको प्रेरणा लेनी चाहिए। मैं तो आपका अनुयायी हूं ही। आशा है आप मेरा पथ प्रदर्शन करती रहेंगी। सादर! 

Comment by manoj shukla on May 1, 2013 at 8:38pm
सींच हर उद्यान को, जो हाथ करते स्वर्ग सम,
नालियों के नर्क की, दूषित हवा उनके लिए........बहुत सुन्दर...आदर्णीया, इस रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
Wednesday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service