बेटी के शव को पथराई आँखों से देखते रहे वह.बेटी के सिर पर किसी का हाथ देख चौंक कर नज़रें उठाई तो देखा वह था. लोगों में खुसुर पुसुर शुरू हो गयी कुछ मुठ्ठियाँ भींचने लगीं इसकी यहाँ आने की हिम्मत कैसे हुई. ये देख कर वह कुछ सतर्क हुए आगे बढ़ते लोगों को हाथ के इशारे से रोका और उठ खड़े हुए. वह चुपचाप एक किनारे हो गया.
तभी अचानक उन्हें कुछ याद आया और वह अन्दर कमरे में चले गए. बेटी की मुस्कुराती तस्वीर को देखते दराज़ से वह कागज़ निकाला और आँखों को पोंछ पढने लगे. पापा मै ऐसे अकेले विदा नहीं लेना चाहती थी. बिटिया की आँखों में उन्हें आंसू झिलमिलाते नज़र आये.
चिता पर बिटिया को देख उनकी आँखे भर आयीं उसे इशारा कर उन्होंने अपने पास बुलाया और जेब से सिन्दूर की डिबिया निकाल कर उसकी ओर बढ़ा दी. हतप्रभ से डबडबाई आँखों से उसने डब्बी लेकर उसकी मांग में सिन्दूर भरा और रोते हुए उसके चेहरे पर झुक कर उसका माथा चूम लिया. उन्होंने जलती लकड़ी उसे थमा दी और बिटिया से माफ़ी मांगते हुए उसके सिरहाने वह कागज़ रख दिया. जलते हुए कागज़ के साथ उन्होंने ऊँची जाती का अभिमान भी जला डाला था.
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आदरणीय ब्रजेश कुमार सिंह जी और गीतिका जी आपकी बात सही है ..शायद प्रेम विवाह की अनुमति न मिलने के कारण हुई एक जवान मौत ही दिमाग में थी इसलिए शीर्षक ऑनर किलिंग रखा .कोशिश करुँगी की इस लघुकथा के लिए कोई और उपयुक्त शीर्षक ढूंढ सकूँ .ध्यान दिलाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार ..
आदरणीय बृजेश नीरज जी की बात से सहमत हूँ ....रचना की अभिव्यक्ति पे बधाई स्वीकारिये आदरणीय कविता जी!
कई कई कारणों से आधुनिक समाज में भी जब प्रेम को विवाह की इजाज़त नहीं मिलती और वो अहंकार के हाथों खत्म कर दिया जाता है , फिर भी पिता के हृदय में स्नेह घुटा घुटा सा ज़िंदा रहता है.... आखिर क्या हासिल होता है? शव पर सिन्दूर ... कैसी विडम्बना को, असमंजस की स्थिति को सांझा करती है ये लघुकथा .... कितने ही सवाल उठाती है..
सुन्दर सार्थक प्रस्तुति के लिए बधाई आदरणीया कविता वर्मा जी
बहुत सुन्दर कथा। बधाई स्वीकारें।
एक जिज्ञासा आपसे साझा करना चाहता हूं कि इस लघुकथा का शीर्षक आपने 'आॅनर किलिंग' क्यों रखा? कथा में इसका कोई जिक्र नहीं है।
आदरणीया कविता शर्मा जी, सुप्रभात व सादर प्रणाम! बहुत सुन्दर। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
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