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हिन्दी गजल...

 

गर्मियों की शान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।

धूप में वरदान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।

 

हर पथिक हारा थका, पाता यहाँ विश्राम है,

भेद से अंजान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।

 

नीम, पीपल, हो या वट, रखते हरा संसार को,

मोहिनी,  मृदु-गान  है, ठंडी हवा हर पेड़ की।

 

हाँफते विहगों की प्यारी, नीड़ इनकी डालियाँ,

और इनकी जान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।

 

रुख बदलती है मगर, रूठे नहीं मुख मोड़कर,

सृष्टि का अनुदान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।

 

जो न साधन जोड़ पाते, वे शरण पाते यहाँ,

दीन का भगवान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।

 

हे मनुष मिटने न दो, जीवन के अनुपम स्रोत को,

गूढ यह विज्ञान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।

 

मौलिक एवं अप्रकाशित

 

----कल्पना रामानी   

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Comment

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Comment by कल्पना रामानी on April 17, 2013 at 7:18pm

राम शिरोमणि जी, मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि सक्रिय बनी रहूँ, छंद विधा में लिखना मेरा प्रिय शौक है, मेरी पुरानी रचनाएँ मेरे ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं। मेरे इसी नाम से आपको गूगल पर लिंक मिल जाएगी।  

Comment by कल्पना रामानी on April 17, 2013 at 7:17pm

आ॰ मित्रों, ब्रजेश जी, वंदना जी, गीतिका जी, राम शिरो मणि जी, रचना को अपना स्नेह प्रदान करने के लिए हार्दिक आभार....

 

Comment by वेदिका on April 17, 2013 at 6:08pm

सही ...शानदार ....मुकम्मल गज़ल पर शुभकामनायें स्वीकारिये आदरेया कल्पना जी!

Comment by ram shiromani pathak on April 17, 2013 at 12:35pm

आदरेया कल्पना जी,अति सुन्दर!///हार्दिक बधाई//आशा करता हूँ आपको निरंतर पढ़ने को मिलेगा //

Comment by Vindu Babu on April 16, 2013 at 10:56pm
आदरणीया कल्पना जी आज के घटते वनों की समस्या से निजात पाने हेतु सुन्दर प्रेरणाश्रोत सिद्ध हो सकती है आपकी गजल।
अन्तिम पंक्तियां अति सुन्दर!
Comment by बृजेश नीरज on April 16, 2013 at 6:12pm

आदरेया कल्पना जी इस सुन्दर रचना पर मेरी बधाई स्वीकार करें।

Comment by कल्पना रामानी on April 16, 2013 at 5:57pm

योगी सारस्वत जी, लक्ष्मण प्रसाद जी, प्राची जी, अशोक कुमार जी एवं कुंती जी, आप सबकी सस्नेह सुंदर टिप्पणियों से बहुत प्रोत्साहन मिला है, सभी नाम मेरे लिए नए हैं, कुछ गलत लिख दिया हो तो अवश्य अवगत कराएं। आप सबका हार्दिक धन्यवाद।

Comment by कल्पना रामानी on April 16, 2013 at 5:52pm

राजेश जी, यहाँ की कक्षा में आकार सीखते सीखते ही इस परिवार से जुड़ गई हूँ। अभी बहुत सीखना है। यहाँ बहुत अच्छा लगा।

 

रचना की प्रशंसा करने के लिए आपका हार्दिक आभार

Comment by राजेश 'मृदु' on April 16, 2013 at 5:39pm

कल्‍पना दी, आपको यहां देखकर बहुत प्रसन्‍नता हुई, आपकी हर रचना खूबसूरत होती है एवं यह भी इसका अपवाद नहीं, सादर

Comment by Yogi Saraswat on April 16, 2013 at 11:10am

नीम, पीपल, हो या वट, रखते हरा संसार को,

भूमि पर वरदान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।

 

हाँफते विहगों की प्यारी, नीड़ इनकी डालियाँ,

और इनकी जान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।

 

रुख बदलती है मगर, रूठे नहीं मुख मोड़कर,

सृष्टि का अनुदान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।

 

जो न साधन जोड़ पाते, वे शरण पाते यहाँ,

दीन का भगवान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।

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