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"ग़ज़ल" तू क्या तेरी हस्ती है क्या ये ध्यान में ला

ग़ज़ल कहने का प्रयास किया है

तू क्या तेरी हस्ती है क्या ये ध्यान में ला
अब उठ खड़ा हो खुद को फिर मैदान मे ला

मज़हब की बातें औ नहीं ईमान की कर
पहले ज़रा इंसानियत इंसान में ला

जब तक जिया उसको बुरा सबने कहा है
क्यूँ रोते हो अब तुम उसे शमशान में ला

नेता है उसको क्या पता क्या है ग़रीबी
उसको कभी इस कोयले की ख़ान मे ला

क्यूँ दीप जलता खुद पे ही इतरा रहा है

दम आजमा तू खुद को इस तूफान में ला

दीप

मौलिक एक अप्रकाशित

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Comment by Dr.Prachi Singh on April 12, 2013 at 7:46pm

बेहद खूबसूरत गज़ल कही है प्रिय संदीप जी 

मज़हब की बातें औ नहीं ईमान की कर 
पहले ज़रा इंसानियत इंसान में ला...वाह !

हर शेर लाजवाब 

हार्दिक दाद पेश है ...क़ुबूल करें 

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 12, 2013 at 6:14pm

आदरणीय प्रिय मित्रवर वाह वाह मज़ा आ गया आनंद आ गया लाजवाब अशआरों से सुसज्जित शानदार ग़ज़ल हेतु दिली दाद कुबूल फरमाएं.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 12, 2013 at 2:13pm

आदरणीय आशीष भाई सादर
बहुत बहुत शुक्रिया इस जर्रा नवाज़ी के लिए
स्नेह यूँ ही बनाए रखिए
सादर आभार

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 12, 2013 at 2:12pm

आदरणीय राम भाई सादर
बहुत बहुत आभार आपका इस हौसलाफजाई के लिए
स्नेह यूँ ही बनाए रखिए

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 12, 2013 at 2:11pm

आदरणीय वेदिका जी सादर प्रणाम
ग़ज़ल को पसंद करने हेतु आभार आपका
मुझे ऐसा लग नहीं रहा है आदरणीया संभवतः मैं किसी एक की बात नहीं कर रहा हूँ
इसीलिए रोता है या तू नही लिखा है
सादर स्नेह यूँ ही बनाए रखिए

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 12, 2013 at 2:09pm

आदरणीय विनय भाई साहब सादर प्रणाम
ग़ज़ल की पसंदगी और हौसलाफजाई के लिए आपका आभार
स्नेह यूँ ही बनाए रखिए

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on April 11, 2013 at 10:54pm

वाह !!! भाई सन्दीप जी, हर शेर लाजवाब है और बेहतरीन गजल --

इन अशआर पर ढेरों दाद कुबूल कीजिये --

जब तक जिया उसको बुरा सबने कहा है
क्यूँ रोते हो अब तुम उसे शमशान में ला

नेता है उसको क्या पता क्या है ग़रीबी
उसको कभी इस कोयले की ख़ान मे ला

Comment by ram shiromani pathak on April 11, 2013 at 8:38pm

क्यूँ दीप जलता खुद पे ही इतरा रहा है।
दम आजमा तू खुद को इस तूफान में ला॥

वाह वाह बड़े भाई बहोत खूब ....... हार्दिक बधाई 

Comment by वेदिका on April 11, 2013 at 7:45pm
सुंदर प्रयास 'दीप' जी!
क्यूँ रोते हो अब तुम उसे शमशान में ला// शायद इस पंक्ति के प्रति न्याय नही हो पाया।
रोते हो की जगह रोता है और तुम के स्थान पर तू होता तो कैसा रहता ....शुभकामनाये आदरणीय
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 11, 2013 at 6:45pm
भाई संदीप जी! अच्छी गजल कही है आपने बधाई।खास करके इन पंक्तियों के लिये-
क्यूँ दीप जलता खुद पे ही इतरा रहा है।
दम आजमा तू खुद को इस तूफान में ला॥

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