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सुनो!!!
यु तनहा रहने का
शउर
सबको नही आता
तनहा होना अलग होता हैं
अकेले होने से
और
मैं तनहा हूँ
क्युकी तुम्हारी यादे
तुम्हारी कही /अनकही बाते
मुझे कमजोर करती हैं
लेकिन
तुम्हारी हस्ती
मेरे वजूद में एक हौसला सा बसती है
परन्तु
यह तन्हाई
सिर्फ मेरे हिस्से में ही नही आई हैं
तेरी हयात में इसने जगह बनायीं हैं

सुनो!!!
यु तनहा रहने का
शउर
सबको नही आता !
तनहा होने में
घंटो खुद को खोना होता हैं
रोते रोते हँसना होता हैं
दामन में भरे हो चाहे कितने कांटे
फूलो की तरह महकना होता हैं...........नीलिमा शर्मा ..... अप्रकाशित एवं मौलिक

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Comment by Saurabh Pandey on April 17, 2013 at 1:08am

बहुत ही गंभीर विवेचना हुई है, आदरणीया नीलिमाजी.

सादर

Comment by Neelima Sharma Nivia on April 12, 2013 at 3:52pm

shukriya nakor ji

Comment by Neelima Sharma Nivia on April 12, 2013 at 3:52pm

shukriya Meena

Comment by Neelima Sharma Nivia on April 12, 2013 at 3:22pm

 mafii chati hun deri se aane ke liy 

Comment by Neelima Sharma Nivia on April 12, 2013 at 3:21pm

Thank u Ashok Ashq ji

Comment by Neelima Sharma Nivia on April 12, 2013 at 3:20pm

Thank u Ashok ji

Comment by Neelima Sharma Nivia on April 12, 2013 at 3:18pm

shukriya Contee ji aage se khyal rakhoongi .shayd iski jagah HUNAR lafz bhi use kiya ja sakta tha 

Comment by अशोक कत्याल "अश्क" on April 10, 2013 at 11:15pm

नीलिमा जी ,

"तनहा होना अलग होता हैं 
अकेले होने से"

आज मे कह सकता हूँ , मे अकेला हूँ , तन्हा नहीं .
उम्दा लेखन , दिल को छू गया ,
सादर

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 10, 2013 at 11:14pm

सच है अकेला होना तनहा होने से भिन्न ही लगता है किन्तु तनहा होने का शउर........ वाह सुन्दर रचना.

Comment by Shyam Narain Verma on April 9, 2013 at 2:18pm

BAHOT KHOOB....................

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