सुनो!!!
यु तनहा रहने का
शउर
सबको नही आता
तनहा होना अलग होता हैं
अकेले होने से
और
मैं तनहा हूँ
क्युकी तुम्हारी यादे
तुम्हारी कही /अनकही बाते
मुझे कमजोर करती हैं
लेकिन
तुम्हारी हस्ती
मेरे वजूद में एक हौसला सा बसती है
परन्तु
यह तन्हाई
सिर्फ मेरे हिस्से में ही नही आई हैं
तेरी हयात में इसने जगह बनायीं हैं
सुनो!!!
यु तनहा रहने का
शउर
सबको नही आता !
तनहा होने में
घंटो खुद को खोना होता हैं
रोते रोते हँसना होता हैं
दामन में भरे हो चाहे कितने कांटे
फूलो की तरह महकना होता हैं...........नीलिमा शर्मा ..... अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
बहुत ही गंभीर विवेचना हुई है, आदरणीया नीलिमाजी.
सादर
shukriya nakor ji
shukriya Meena
mafii chati hun deri se aane ke liy
Thank u Ashok Ashq ji
Thank u Ashok ji
shukriya Contee ji aage se khyal rakhoongi .shayd iski jagah HUNAR lafz bhi use kiya ja sakta tha
नीलिमा जी ,
"तनहा होना अलग होता हैं
अकेले होने से"
आज मे कह सकता हूँ , मे अकेला हूँ , तन्हा नहीं .
उम्दा लेखन , दिल को छू गया ,
सादर
सच है अकेला होना तनहा होने से भिन्न ही लगता है किन्तु तनहा होने का शउर........ वाह सुन्दर रचना.
BAHOT KHOOB....................
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