For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

                 अंतिम स्पंदन

   यदि मैं अर्पित करता भी स्नेह

   उमड़ता रहा है जो मन में मेरे

   क्षण-अनुक्षण तुम्हारे लिए,

   कोई अंतरित ध्वनि कह देती है..कि

   स्नेह  इतना  तुम  सह  ही  न  सकती,

   और फिर द्वार तुम्हारे से लौट आए

   अस्वीकृत स्नेह का बींधता क्रंदन...

   मैं ही स्वयं उसको सह न सकता।

   अबोध बालक-सा सकुचाता, बिलखता,

   यह सशंक स्नेह अंतहीन वेदना संजोए

   तुमको निष्फल पुकार-पुकार कर,

   पत्थर-दिल चट्टानों से टकरा-टकरा कर

   किस-किस बादल की ओट में  बरसता?

   मेरे ह्रद्य की धड़कन जब शिथिल पड़ जाए

   तो इस अस्वीकृत अनुरक्त स्नेह को प्रिय

   तुम झुकी हुई पलकों से कुछ पल के लिए

   अपने अंतरमन के प्राणों में आश्रय दे देना,

   और ऐसे में यदि हो जाएँ झंक्रत तार तुम्हारे,

   अपने ओंठों के स्निग्ध स्पर्ष के स्पंदन से

   अथवा आँखो से बहते अंजन से तुम मुझको

   रात के सन्नाटे में  स्वयं अलविदा कह देना।

                        --------

                                         -- विजय निकोर

 

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 977

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on April 10, 2013 at 7:41am

आदार्णीया ’राज” जी,

 

आपने कहा.....    //बहुत मार्मिक बस क्या कहूँ कुछ शब्द ही नहीं मिल रहे//

राज जी, जब भी लिखने लगता हूँ तो मार्मिक भावनाएँ अपना हक जताने लगती हैं,।

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।

 

सादर,

विजय निकोर

 

 

Comment by vijay nikore on April 10, 2013 at 7:35am

ब्रजेश जी,

कविता की सराहना के लिए आभार।

 

//जिस खूबसूरती से आपने उकेरा है वह आप ही कर सकते हैं।//

आपने यह कह कर जो मान दिया है, उसके लिए शत-शत धन्यवाद।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on April 10, 2013 at 7:29am

शालिनी जी:

कविता की सराहना के लिए हार्दिक आभार।

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on April 9, 2013 at 8:28am

आदरणीय अशोक जी:

 

रचना की सराहना के लिए मेरा हार्दिक आभार। आशा है आप ऐसे ही मनोबल बढ़ाए रखेंगे।

 

सादर,

विजय निकोर

 

Comment by vijay nikore on April 9, 2013 at 8:25am

आदरणीया सीमा जी:

 

//मन को झकझोरती हुए एक और हृदयस्पर्शी प्रस्तुति .....विजय जी आपकी रचनाएँ एक विशेष भाव दशा को बहुत सशक्त तरीके से अभिव्यक्त करती रहीं हैं//

 

सीमा जी, यह कह कर आपने जो मुझको ढेर सारा मान दिया है, उसके लिए आभारी हूँ।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by विजय मिश्र on April 8, 2013 at 7:08pm

 विजयजी ! श्रेष्ठता लिए हुए तो आपकी सभी रचनाएँ होतीं हैं , यहाँ प्रसंशा के केवल एक शव्द --- आत्मविभोर .

Comment by vijay nikore on April 7, 2013 at 2:59pm

आदरणीय राम जी:

 

कविता की सराहना के लिए आभारी हूँ।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on April 7, 2013 at 2:58pm

आदरणीय केवल प्रसाद जी:

 

//आपने एक असहाय और प्रेम समर्पित व्यक्ति की मनोदशा का चित्रण बड़ी ही संजीदगी किया- -‘//

 

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on April 7, 2013 at 5:58am

आदरणीया प्राची जी:

 

शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।

 

सादर,

विजय

Comment by vijay nikore on April 7, 2013 at 4:54am

आदरणीया कुंती जी:

 

//मन की भावनाओं का आप जिस परिपक्वता से संजोते हैं इसकी

कोई तुलना नहीं.यह हर प्रेमी के दिल की धड़कन बन जाती है.//

आप मुझको इतना मान देती हैं, आपका शत-शत आभार।

बस ऐसे ही मित्रता बनी रहे।

 

सादर और सस्नेह,

विजय निकोर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service