For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माँ की सीख -पापा के संस्कार

माँ की सीख पापा के संस्कार

फँसी रहती हूँ इनमें मैं बारम्बार

माँ ने सिखाया था – पति को भगवान मानना

पापा ने समझाया था – गलत बात किसी की न सुनना

 

माँ ने कहा - कितनी भी आधुनिक हो जाना

पर अपने परिजनों का तुम पूरा ख्याल रखना

पढ़लिख आधुनिक बनकर रूढीवादी न बनना

और पुरानी परम्पराओं का भी तुम ख्याल करना......

 

पापा ने बताया - भारतीय संस्कृति बहुत अच्छी है

पर इसकी कुछ मान्यताएं बहुत खोखली हैं

बेटे-बेटी में भेदभाव बहुत दर्शाती है

मुझे ये बात न बिलकुल भाती है

पति-पत्नी दोनों जीवनसाथी होते हैं

पर पति का स्थान इसमें उच्च मानते हैं ....

 

माँ ने समझाया - बिटिया यूँ तो पति-पत्नी दोनों होते हैं साथी

पर पति सेवा ही पत्नी को धर्म का मार्ग दिखाती

पति की दीर्घआयु के लिए करवाचौथ का व्रत न भूलना

चंद्रदेव की कर पूजा पति का जब करेगी तू दर्शन

जीवन तेरा हो जायेगा इससे सफल और पूरण ....

 

पापा ने सिखाया - तेरा लालन पालन मैंने किया न किसी बेटे से कम

इस पुरुष प्रधान देश मे बेटी नहीं है किसी बेटे से दोयम

बेटी ही तो देती एक बेटे को जनम – हर कष्ट सहकर

फिर मनाती भी है  हर वर्ष भाईदूज ,राखी ,करवाचौथ – वो भूखे पेट रहकर

जिन्दगी की इन हालातों को बदलना , तू हिम्मती और संयमी  बनकर ....

                                                               

आज माँ की सीख-पापा के संस्कार

सभी तो हैं ,जिन्हें मैं चली साथ लेकर

पर कई खवाहिशें.... कई सपने ....

कई हसरतें ....और कई उलझनें ....

समाज की कई रीतिरिवाज़ और रस्में ....

जिनमें मन की आवाज़ दब सी जाती है

मन के भावों को, व्यक्त नहीं वो कर पाती है

मानसिकरूप से अपने निर्णय

बेटी कहाँ आज भी ले पाती है

न जाने वो दिन कब आएगा

बेटी को बेटे से कम नहीं आँका जायेगा   

          

विजयश्री

१०.११.२०१२

Views: 1305

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ram shiromani pathak on April 5, 2013 at 9:34pm

सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया विजयश्री जी !!!!!!!!!!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 5, 2013 at 8:06pm

माँ की सीख और पापा के दिए संस्कार दोनों ही जीवन पथ पर संतुलन बना कर चलने के लिए बहुत ज़रूरी हैं...

रीति रिवाज़, रस्में सब जीवन को आसान बनाने के लिए और मधुरता से भर देने के लिए हैं.. समाज नें उनका स्थूल तत्व तो ग्रहण कर लिया और उसके प्रति बहुत आग्रही भी हो गया...लेकिन प्राण तत्व को बहुत पीछे छोड़ दिया. इसी कारण ये किसी भी प्राण तत्व ग्राही संवेदनशील ह्रदय को आरोपित से प्रतीत होते हैं........और हम मन ही मन अपनी माँ और पिता की दी गयी शिक्षा और संस्कारों का ज़िंदगी के आरोपित खोखलेपन के साथ सामंजस्य नहीं बिठा पाते.

मानसिकरूप से अपने निर्णय

बेटी कहाँ आज भी ले पाती है.......................मर्मस्पर्शी पंक्ति 

न जाने वो दिन कब आएगा

बेटी को बेटे से कम नहीं आँका जायेगा  .............इस प्रश्न का उत्तर हर बेटी का मन ढूँढता है.

इस सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया विजयश्री जी 

Comment by coontee mukerji on April 5, 2013 at 6:29pm

विजय श्री जी बहुत सुंदर ,पापा के संस्कर , माँ की सीख .मैं समझती हूँ  कि जिस प्रकार हम अपने बेटे की लम्बी उमर के लिये अगर

जीवित पुत्रिका का व्रत कर सकती हैं तो उसी प्रकार करवा चौथ भी करती हैं  .बस मन में प्रेम की भावना होनी चाहिये . बूराई तब जन्म

लेती जब व्रत पूजा पाठ बलपूर्वक कराई जाय .मान लीजिये ये रीति रिवाज़ समाज से निकाल दिया जाय तो कल्पना कीजिये कैसा होगा वह समाज . धन्यवाद .

Comment by राजेश 'मृदु' on April 5, 2013 at 6:17pm

आप अपनी जगह बिल्‍कुल सही हैं, जहां तक मेरा अनुभव है बंगाल, सहित पूरा उत्‍तरपूर्व का इलाका ऐसा है जहां स्‍त्री को कहीं अधिक आजादी मिली है ।  यह एक शोध का विषय है कि ऐसा क्‍यों हुआ । हो सकता है हिंदी भाषी प्रदेशों से सामंतवादी विचारधारा का अभी लोप होना बाकी है, यहां का ट्रेंड भी ऐसा ही है कि लड़कों का रूझान उन नौकरियों की ओर अधिक है जहां वे दबदबा जमा सके जैसे कि आई ए एस एवं इससे  जुड़ी अन्‍य सेवाएं । 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 5, 2013 at 5:22pm

माँ की सीख में औरत् का दर्द छिपा है 

पापा के संस्कार संस्कृति के देन है | 

सामंजस्य बिठाना,संज्ञान लेना है,

सही निर्णय लेकर आगे बढ़ना है | -

.मेरी इस पर यही समझ/सलाह है |-  सुन्दर अभ्व्यक्ति जो सोचने का विवश करती है | बधाई स्वीकारे विजय श्री जी 

Comment by vijayashree on April 5, 2013 at 5:02pm

 मीना पाठकजी आभार ......

Comment by Meena Pathak on April 5, 2013 at 4:41pm

आज माँ की सीख-पापा के संस्कार

सभी तो हैं ,जिन्हें मैं चली साथ लेकर

पर कई खवाहिशें.... कई सपने ....

कई हसरतें ....और कई उलझनें ....

समाज की कई रीतिरिवाज़ और रस्में ....

जिनमें मन की आवाज़ दब सी जाती है

मन के भावों को, व्यक्त नहीं वो कर पाती है

मानसिकरूप से अपने निर्णय

बेटी कहाँ आज भी ले पाती है

न जाने वो दिन कब आएगा............. दिल को छूती हुई पंक्तियाँ .. बधाई आप को 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
8 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
17 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
17 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
Friday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
Friday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"संवेदनाहीन और क्रूरता का बखान भी कविता हो सकती है, पहली बार जाना !  औचित्य काव्य  / कविता…"
Friday
Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"अच्छी ग़ज़ल हुई, भाई  आज़ी तमाम! लेकिन तीसरे शे'र के सानी का भाव  स्पष्ट  नहीं…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service