For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आँखों से मेरी छलक पड़ते हैं आँसू।
दिल में ज़ख्म बनकर  हँसते हैं आँसू।।
ग़म से जब दिल बेज़ार होता है,
ऐसे हाल में मुस्कुराना भी बेकार होता है,
तभी मोती बनकर चमकते हैं आँसू।
आँखों से मेरी छलक पड़ते हैं आँसू।।
बुरे वक़्त का दर्द सीने में छुपाया नहीं जाता,
क्या करें,जब किसी को ये बताया नहीं जाता,
यही दर्द के मोती बनकर चमकते हैं आँसू।
आँखों से मेरी छलक पड़ते हैं आँसू।।
इस दर्द को सीने में संभालना होता है मुश्किल,
इस बाढ़ को बढ़ने से रोकना होता है मुश्किल,
तोड़कर नयनों का बांध छलक पड़ते हैं आँसू।
आँखों से मेरी छलक पड़ते हैं आँसू।।
ग़म का ही साया नहीं होते ये आँसू,
ख़ुशी का हमसाया भी होते हैं ये आँसू,
तभी तो कभी पाकर ख़ुशी आँखों में मचलते हैं आँसू।
आँखों से मेरी छलक पड़ते हैं आँसू।
दिल में ज़ख्म बनकर हँसते हैं आँसू।।
'सावित्री राठौर'
[मौलिक एवं अप्रकाशित]

Views: 582

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Savitri Rathore on March 26, 2013 at 2:30pm

डॉ प्राची जी,सादर प्रणाम ! आपने मेरी रचना को समय एवं सराहना प्रदान की ,जिसके लिए मैं हृदय  से आभारी हूँ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 22, 2013 at 2:42pm

भावनाओं के अतिरेक को दर्शाते हैं आंसू, तभी तो चाहे गम हो खुशी हो जीत हो हार हो या दिल में उमड़ रहा प्यार हो हमेशा साथ देने चले आते हैं आँसू

आँसुओं पर सुन्दर अभिव्यक्ति प्रिय सावित्री जी 

शुभकामनाएँ 

Comment by Savitri Rathore on March 21, 2013 at 11:36pm

मीना जी और बृजेश जी, आपके बधाई संदेशों के लिए मैं आभारी हूँ।

Comment by Meena Pathak on March 21, 2013 at 7:42pm

बहुत सुन्दर रचना .. बधाई

Comment by बृजेश नीरज on March 21, 2013 at 6:55pm

बहुत सुन्दर!

Comment by Savitri Rathore on March 21, 2013 at 4:57pm

धन्यवाद राजेश जी ! महाकवि जयशंकर 'प्रसाद' का वह काव्य -ग्रन्थ  हिंदी- साहित्य-सागर का एक अमूल्य रत्न है और मेरी यह कविता उसकी धूल भी नहीं है।पर यह सत्य है कि 'आँसू' मुझे स्वयं बहुत प्रिय है और उसी से प्रेरित होकर मैंने आँखों में बसे इन आँसुओं को यह शीर्षक देकर इस कविता के रूप में ढाला।

Comment by राजेश 'मृदु' on March 21, 2013 at 4:33pm

सुंदर कविता, इसी शीर्षक से आंसू सर्ग याद आ गया

Comment by Savitri Rathore on March 21, 2013 at 4:13pm

आदरणीय राम शिरोमणि जी एवं दिनेश जी,नमस्कार। मेरी कविता को समय देने और सराहने के लिए आपका बहुत -बहुत धन्यवाद।ऐसे ही स्नेह बनाये रखिये।

Comment by Savitri Rathore on March 21, 2013 at 4:10pm

आदरणीय कुन्ती जी,आपने मेरी कविता को आत्मसात किया,इसके लिए मैं ह्रदय से आभारी हूँ।निःसंदेह जीवन के लिए आँसू मोती के समान अमूल्य हैं।

Comment by Savitri Rathore on March 21, 2013 at 4:07pm

आदरणीय विजय जी, सादर प्रणाम ! आपने कविता के मर्म को समझा,इसकी मुझे प्रसन्नता है।बहुत -बहुत आभार।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service