For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भगवान का अस्तित्व ......?

जिन्दगी एक कठपुतली सी है
जिसकी डोर .....
वो जो ऊपर बैठा है
उसके हाथो में है
वो जो दीखता नही
मगर है तो सही .....
कोई कहता है कि
भगवान नही हैं 
और कोई भगवान पर
अटूट विश्वाश रखता है
मगर सच तो सिर्फ इतना सा है
जब कोई प्रार्थना हो जाती है स्वीकार
तो लगता है जैसे ईश्वर
हमारे कण - कण में हैं
जो सुन लेते हैं हमारी पुकार
दिल से निकलते ही ....
मगर जब ........
बार-बार पुकारने पर भी
ईश्वर सुनते नही .....
या यूँ कहूँ कि
प्रार्थना कुबूल नही होती जब
बार-बार करने पर भी
तब लगता है कि
ईश्वर हैं ही नहीं
कही भी नही .......
क्यों हम इंसानों के स्वार्थ पर
निर्भर करता है 
भगवान का अस्तित्व ......?????
जिन्दगी एक कठपुतली सी है… 
जिसकी डोर .....
वो जो ऊपर बैठा है
उसके हाथो में है
वो जो दीखता नही
मगर है तो सही .........
दुनिया की भीड़ में कई बार
जब हो जाते हैं एकदम अकेले
सभी अपनों के बीच भी
रह जाते है तन्हा से ...
तब कोई दोस्त मिलता है ऐसा
जो समझ लेता है आपकी हर बात को
जो जानना चाहता है आपकी परेशानी
जो धीरे धीरे आपका
सबसे करीबी बन जाता है .....
उसमे भी तो ईश्वर का ही
रूप होता है .......
वरना कहाँ ऐसा होता है
कि बिना कुछ लिए ही
कोई आपके बारे में सोचे
आपकी फ़िक्र करे .........
आपसे प्यार करे .......
क्योंकि ऐसा तो सिर्फ माँ, पापा ही करते हैं
जो बिना कुछ मांगे, बिना कुछ लिए
आपको अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करते हैं
बिलकुल उस ईश्वर की तरह
जिसके हाथो में हमारी जिन्दगी की डोर है
वो जो रहता है हमारे कण कण में
धडकता है धड़कन में .....
बसता है सांसो में .....
जिसे पल पल हमारी खबर रहती है
हमारे बिना कुछ कहे .......
वो भी समझ लेता है हमारी हर बात को
जान लेता है हमारी ज़रूरतों को
और पूरा भी कर देता है
उन्हें अपने हिसाब से ...
बिलकुल माँ, पापा की तरह .......!!!!

Views: 419

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on March 21, 2013 at 5:24pm

 

तब कोई दोस्त मिलता है ऐसा
जो समझ लेता है आपकी हर बात को
जो जानना चाहता है आपकी परेशानी
जो धीरे धीरे आपका
सबसे करीबी बन जाता है .....
उसमे भी तो ईश्वर का ही
रूप होता है .......

 

प्रतिक्रिया पहले दे चुका था ... अब आपकी कविता के भावों को पुन:

सराहा तो इस भाव की सच्चाई और ही अच्छी लगी।

Comment by राजेश 'मृदु' on March 21, 2013 at 4:58pm

सियाराममय सब जग जानी   

Comment by Savitri Rathore on March 21, 2013 at 4:20pm

जो धीरे धीरे आपका
सबसे करीबी बन जाता है .....
उसमे भी तो ईश्वर का ही
रूप होता है .......
वरना कहाँ ऐसा होता है
कि बिना कुछ लिए ही
कोई आपके बारे में सोचे
आपकी फ़िक्र करे .........
आपसे प्यार करे .......
वास्तव में सच कहा है आपने।सोनम जी, इतनी अच्छी रचना हेतु बधाई स्वीकार करें। अत्यंत सरलता से ईश्वर एवं माता -पिता में उनका आभास दिलाना,कविता का सुन्दर सन्देश ग्राह्य है।

Comment by Sonam Saini on March 21, 2013 at 11:59am

आदरणीय विजय सर जी सादर नमस्कार
समय व आशीर्वाद देने के लिए आभार व धन्यवाद सर जी

Comment by Sonam Saini on March 21, 2013 at 11:54am

आदरणीय योगी सर नमस्कार
आपने कविता को समझा और अपना समय दिया ...बहुत बहुत शुक्रिया सर

Comment by vijay nikore on March 20, 2013 at 5:57pm

 

आदरणीया सोनम जी:

 

सरलता और सच्चाई से बुनी इस कविता के लिए बधाई।

 

सादर और सस्नेह,

विजय निकोर

Comment by Yogi Saraswat on March 20, 2013 at 3:22pm

दुनिया की भीड़ में कई बार
जब हो जाते हैं एकदम अकेले
सभी अपनों के बीच भी
रह जाते है तन्हा से ...
तब कोई दोस्त मिलता है ऐसा
जो समझ लेता है आपकी हर बात को
जो जानना चाहता है आपकी परेशानी
जो धीरे धीरे आपका
सबसे करीबी बन जाता है .....
उसमे भी तो ईश्वर का ही
रूप होता है .......
वरना कहाँ ऐसा होता है
कि बिना कुछ लिए ही
कोई आपके बारे में सोचे
आपकी फ़िक्र करे .........
आपसे प्यार करे .......

बहुत सुन्दर ! ये तो है सोनम जी ! जब भगवान् सुन लेता है , मनोकामना पूरी हो जाती है तो लगता है भगवन है लेकिन जब कुछ नहीं होता , दुःख होता है तब लगता है भगवान् तो क्या इस दुनिया में ही शायद कोई नहीं है ! बहुत सुन्दर !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service