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//आज सब जगह इन प्राकृतिक छोटे जलाशयों का अस्तित्त्व खतरे में हैं। एक दिन जब इनकी आवश्यकता पङेगी तब तक इनका अस्तित्त्व समाप्त हो जाएगा।//
सही कहा आपने, भाई सतवीरजी. आज महाराष्ट्र की में जो सूखे से दुर्दशा हुई है उसका सबसे बड़ा कारण इन्हीं जल-संसाधनों के रखरखाव में हुई भयंकर लापरवाही ही है. जल के प्रति सामान्यतया लोग गंभीर नहीं होते जबतक कि समस्या सिर पर न आ पड़े.
भाई, हम तथाकथित रूप से शिक्षित तो हुए हैं लेकिन कई-कई उन मोर्चों पर हमारी आज की शिक्षा ने हमें फेल कर दिया है जहाँ गाँव-खेड़े के सामान्य जन बिना हमारी तरह शिक्षित हुए सफल एवं सामुहिक ज़िन्दग़ी जीया करते थे. सारा कुछ मनोवृति पर निर्भर करता है.
हमारे पास वैसे आज चेन्नै शहर का सफल उदाहरण भी है, जहाँ शत्-प्रतिशत् वाटर-हार्वेस्टिंग (Water-harvesting) से प्रति वर्ष की जल-समस्या से निज़ात पा लिया है. सन् २००४-०५ तक जो शहर जल-समस्या से जूझता था २००८ तक जल-समस्या से करीब-करीब पूरी तरह मुक्त हो चुका था. हमसभी को सोचना होगा कि क्यों हम चेन्नै जैसे शहरियों की तरह समर्पण नहीं दिखा सकते जहाँ शहर के सभी के सभी घर (१०० प्रतिशत) बिना वाटर-हार्वेस्टिंग सिस्टम के आज नहीं हैं.
भाई सतवीर जी, जोहड़ों पर अच्छी जानकारी उपलब्ध करायी आपने. इन्हीं जोहड़ों को संभवतः हमारे इधर तालाब या पोखर कहते हैं. और उनका भी आजकल यही हाल है जो आपकी ओर के जोहड़ों का है.
पानी की महत्ता को समझाते ये जलाशय कितने महत्त्वपूर्ण होते हैं यह एक राजस्थानी भाई से अधिक कौन जानता होगा.
इस जानकारी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.
आपने ठीक लिखा है, आजकल जन उपयोगी और गरीब जनता के लिए आवश्यक छोटे छोटे नदी तालाबो, तक को कुछ स्वार्थी
लोग ख़त्म कर रहे है, यह तो राजस्थान पत्रिका के पर. समपादक श्री गुलाब कोठ्यारी जी की भारतीय संस्कृति के
संरक्षण अरु गावों के प्रति सकारात्मक सोच का परिणाम है, जो वे यदा कदा अमृत-जलंम अभियान चलाते
रहते है |सभी देश भक्त नागरिको को भारतीय संस्कृति के प्रतीक और प्राकृतिक जल के भण्डार गृह जोहङों को
सुरक्षित रखने का संकल्प लेना चाहिए | ऐसे सामयिक लेख के लिए हार्दिक बधाई श्रीसतबीर वर्मा बिरकालीजी
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