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बनकर साकी आया हूँ मै आज जमाने रंग|
ऐसी आज पिलाऊंगा, सब रह जायेंगे दंग||

अभी मुफिलिसी सर पर मेरे, खोल न पाऊं मधुशाला|
फिर भी आज पिलाऊंगा मै हो वो भले आधा प्याला|
ऐ मेरे पीने वालों तुम, अभी से यूँ नाराज न हो|
मस्त इसी में हो जावोगे, बड़ी नशीली है हाला|

एक-एक पाई देकर मै जो अंगूर लाया हूँ|
इमानदारी की भट्ठी पे रख जतन से इसे बनाया हूँ|
तनु करने को ये न समझना, किसी गरीब का लहू लिया|
राजनीति से किसी तरह मै अब तक इसे बचाया हूँ|

हर बार तू मदिरा क्यूँ पीता, जो बनी है झूठे वादों से|
पल भर का है नशा जिसमे , जो बिकती है जल्लादों से|
गर पीना ही है तुझको तो, आज ले तू कुछ ऐसा पी|
तुझ पे नशा कुछ ऐसे चढ़े, न उतरे किन्ही इरादों से|

मुफ्त पिलाऊंगा सबको मै, दाम नहीं कुछ भी लूँगा|
होने वाली नशा का मै फिर नाम नहीं कुछ भी दूंगा|
इसके नशे में होकर तुम हर गम औ' फ़िक्र भूल जाओगे|
मस्त होकर तुम जियोगे, मस्त होकर मै भी जी लूँगा|

खुद साकी मै बनू आज, खुद ही बन जाऊं हाला भी|
अधरों से मुझे लगा ले तू, बन जाऊं ऐसा प्याला भी|
मेरे नशे में तुम झूमो, मेरा ही नशा बस तुमपे हो|
यदि खोल न पाऊं मधुशाला, बन जाऊं खुद मधुशाला भी|

इस अम्बर की जरुरत क्या, अम्बर ही वसन हो जाएगा|
भूलेगा ओछी मर्यादा, पी इतना मगन हो जाएगा|
ये कष्ट दुस्सह पीड़ा तन की, और मन की पिपासा जाएगी|
जब छोड़ सजे पैमानों को, सच्ची मदिरा अपनाएगा|

कही न कोई सजावट है, टूटा प्याला पर मेरा है|,
लेकिन इसमें तू माने तो, कुछ अधिकार भी तेरा है|.
'यदुकुल' मेरा और मिलाना पानी दूध में बात सही|,
पर मेरी हाला सच्ची है , जैसे रात सबेरा है|,.


अभी अचानक ध्यान हुआ, ऐसी भी मिली थी मधुशाला|,
बरबस ही नशा छ जाता था , बस देख उसकी यौवन हाला|.
साकी बने नयन उसके , कभी देते दावत पीने की|,
जब पीने को तैयार हुआ, हा ! कहाँ खो गया वो प्याला|.

हा ! मेरे होठों तक आकर , छीन गया मेरा प्याला|,
एक बूँद भी हलक के निचे , जा न सकी उसकी हाला|,
देश के ठेकेदारों ने मिलकर उसको ऐसे लूटा|,
साकी अब तक होश हीन है , गुमशुम सी है मधुशाला|.
गुमशुम सी है मधुशाला............................................

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Comment by आशीष यादव on November 15, 2010 at 10:06am
dhanywaad rana ji aur veerendra ji.
Comment by Veerendra Jain on November 14, 2010 at 5:32pm
sunder rachna hai ashish bhai...bahut bahut badhai...

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on November 14, 2010 at 8:16am
पूरानी बोतल में ज़दीद ख्यालों से लबरेज़ हाला का लुत्फ़ आ गया|
आशीष भाई बधाई|
Comment by आशीष यादव on November 14, 2010 at 4:52am
Aadarniy aachary ji dhanywaad.
Comment by sanjiv verma 'salil' on November 14, 2010 at 12:33am
नवीन जी जो कहें वही सही...
Comment by आशीष यादव on November 13, 2010 at 6:45pm
शेषधर तिवारी जी आप का सुझाव सर आँखों पर| मै आगे से ध्यान रखूँगा| आप लोग अपना सुझाव हमेशा देते रहे जिससे की हमें भी गलतियों से सिखने को मिल सके|
Comment by आशीष यादव on November 13, 2010 at 6:42pm
हौसलाअफजाई के लिए धन्यवाद अभिनव जी, राकेश जी, और गुरु जी| आप लोगो का आशीर्वाद मै हमेश चाहूँगा|
Comment by Rash Bihari Ravi on November 13, 2010 at 3:59pm
khubsurat bahut badhia bhai
Comment by Abhinav Arun on November 12, 2010 at 9:57pm
वाह वाह आशीष जी आपने पुरानी मधुशाला की याद दिला दी !! बहुत खूब क्या रवानगी है !!!बधाई !!
Comment by आशीष यादव on November 12, 2010 at 6:43am
Dhanywad navin ji aur jogendar ji.

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