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तुम अविराम हृदय में

गहरे पैठे जाते हो

कैसे रोकूं तुमको कि

जाने क्या कर जाते हो

 

तुमसा दूजा कौन जगत में

जिसका मैं विश्वास करूं

पर तुम हो मेरे मन में

नित हलचल कर जाते हो

 

सावन की बौछारों से

भींज गया ये तन मन

प्रेम की अविरल धारा में

संग बहा ले जाते हो

 

प्रातः की रश्मि जैसा

उज्ज्वल तेरा आह्वाहन

चल देता हूं संग तुम्हारे

जहां जहां ले जाते हो

                 - बृजेश नीरज

 

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Comment by बृजेश नीरज on March 1, 2013 at 5:59pm

आदरणीया मीना जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद!

Comment by बृजेश नीरज on March 1, 2013 at 5:58pm

आदरणीया प्राची जी आपका आभार!

Comment by बृजेश नीरज on March 1, 2013 at 5:57pm

आदरणीय राजेश जी बहुत बहुत धन्यवाद!

Comment by बृजेश नीरज on March 1, 2013 at 5:55pm

सतवीर वर्मा जी आपका आभार।

Comment by Meena Pathak on March 1, 2013 at 2:19pm

प्रातः की रश्मि जैसा

उज्ज्वल तेरा आह्वाहन

चल देता हूं संग तुम्हारे

जहां जहां ले जाते हो....... बहुत सुन्दर रचना ... बधाई आदरणीय बृजेश जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 1, 2013 at 12:51pm

प्रातः की रश्मि जैसा , उज्जवल तेरा आह्वाहन....

बहुत सुन्दर पंक्ति, 

कोमल भावों से पगी इस रचना के लिए हार्दिक बधाई आ. बृजेश जी 

Comment by राजेश 'मृदु' on March 1, 2013 at 11:13am

तुमसा दूजा कौन जगत में

जिसका मैं विश्वास करूं

पर तुम हो मेरे मन में

नित हलचल कर जाते हो   प्रेम की सुंदर अभिव्‍यक्ति, बहुत बधाई इस रचना पर

Comment by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 1, 2013 at 9:57am
"प्रातः की रश्मि जैसा
उज्ज्वल तेरा आह्वाहन
चल देता हूं संग तुम्हारे
जहां जहां ले जाते हो"
वाह सा बृजेश जी, सुबह सुबह आपने अपनी कलम से तरोताजा कर दिया, धन्यवाद।

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