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राज की बात हम तलक ही रहे
ये मुलाक़ात हम तलक ही रहे ।

कुछ सवालात पूछ बैठे हम
कुछ सवालात हम तलक ही रहे ।

उनके इल्ज़ाम सब थे झूठे मगर
मेरे इस्बात हम तलक ही रहे ।

डर है तुझको बहा न ले जाये
ऐसी बरसात हम तलक ही रहे ।

इन सितारों को बाँट ले दुनिया
चाँदनी रात हम तलक ही रहे ।

(इस्बात - प्रमाण/सुबूत)

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 19, 2013 at 11:51am

कुछ सवालात पूछ बैठे हम 
कुछ सवालात हम तलक ही रहे ।

इन सितारों को बाँट ले दुनिया 
चाँदनी रात हम तलक ही रहे ।----वाह क्या बात कही दिली दाद कबूले इन लाजबाब शेरों के लिए बहुत बधाई इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए  

Comment by वीनस केसरी on February 19, 2013 at 1:39am

वाह भाई वाह वा
जिंदाबाद जिंदाबाद
कमाल कर दिया
आशीष जी आपकी यह पहली ग़ज़ल है जिसने झूमने पर मजबूर कर दिया ... मेरी जानकारी में यह आपकी ६ या ७ ग़ज़ल है
इतने कम समय में ऐसी पुख्तगी के क्या कहने ...

कमाल की रदीफ़ चुनी और अंत कर बखूबी निभा ले गये ...
सच कहूँ तो आपने इस ग़ज़ल से चौंका ही दिया

ढेरो ढेर दाद क़ुबूल करें ...
भाई कम लिखें मगर ऐसा ही लिखें ...
या इससे अच्छा :)))))

कुछ सवालात पूछ बैठे हम
कुछ सवालात हम तलक ही रहे ।
वाह भाई वा

एक शेर की ओर ध्यान चाहूंगा

उनके इल्ज़ाम सब थे झूठे मगर
मेरे इस्बात हम तलक ही रहे ।

अपने लिए "मेरे" और "हम" का प्रयोग एक ही शेअर में नहीं करना चाहिए .... हालांकि एक लफ़्ज़ (हम) रदीफ़ में आ गया है इसलिए छूटमिल सकती है मगर अगर इससे बचने का उपाय किया जाये तो बेहतर होगा, ख़ास कर तब जरूर जब शेर खराब न हो रहा हो 

आप यह भी कर सकते थे ...

उनके इल्ज़ाम सब थे झूठे मगर
सारे इस्बात हम तलक ही रहे ।

Comment by वेदिका on February 19, 2013 at 1:29am

कुछ सवालात पूछ बैठे हम
कुछ सवालात हम तलक ही रहे ।

 सभी शेर एक से बढकर एक 

बधाई !!

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 18, 2013 at 11:18pm

:)  मेरा सौभाग्य सर   :)


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 18, 2013 at 11:16pm

आप धीरे-धीरे ओबीओ परंपरा से वाकिफ़ होते जायेंगे भाईजी.

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 18, 2013 at 9:31pm

आदरणीय भी, भाई भी ऊपर से जी भी |
क्यों बच्चे को लज्जित कर रहे हैं सर ?
आप आशीष भी कह दें तो आशीष प्राप्त हो जायेगा मुझे |  :) :)


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 18, 2013 at 8:40pm

दिले नादां तुझे हुआ क्या है .. . बड़ा प्रसिद्ध मिसरा है. २१२ या ११२ औ आखिर में २२ या ११२ थोड़ा भ्रमित करता है.

आपसे यही जानना चाहता था, आदरणीय भाईजी.

सधन्यवाद

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 18, 2013 at 8:39pm

शुक्रिया सर |

लिखते समय मुझे भी २१२ और ११२ में कुछ कठिनाई हुई लेकिन फिर सब ठीक हो गया | प्रणाम |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 18, 2013 at 8:33pm

जी समझ गया था, आशीषजी..   हार्दिक धन्यवाद.. . इस पर अपने मंच पर भी तरही मुशायरा आयोजित हो चुका है, भाईजी.

आपकी ग़ज़ल पर पुनः दिल से बधाई कह रहा हूँ.. .

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 18, 2013 at 8:08pm

धन्यवाद् आ. रेखा जी |

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