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आँख मिचौली वासंती संग

पीत वसन से सजी धरती सखि 

सोन से भाव में तोलि  रही सब 

सोंधी सी खुश्बू हिया अब उमड़ति 

प्रीति के चन्दन लपेटि रही अंग 

कुसुमाकर बनि काम कुसुम तन 

सिहरन बनि झकझोरि रहे हैं 

नील गगन रक्तिम बदरी मुख 

मलयानिल बढ़ी खोलि दिए हैं 

पतझर के दिन बीते रे सजनी !

कोंपल-हरि  मन जीत लिए हैं 

कूके कोयलिया मन बागन में 

बौर सना रस प्रीति  सुधा जिमि 

पवन मंद ज्यों बेल लिपटि फिर 

दूर भये व्याकुल चितवन करि 

आँख मिचौली वासंती संग 

आनंदी आनंद मगन ह्वे 

सब ऋतुवन को जीति लियो है …..

पियरी सर-सों मन मीत पियारी 

प्रीति  अधर खिलि मोह लियो है 

स्वर्ग अप्सरा मोर मगन  मन झंकृत कर  हे 

दुल्हन वसुधा श्रृंगार चरम करि तीन लोक में 

प्रकृति नटी हिय झंडा गाडि के रीझि रही है !! 

--------------------------------------------------

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5 

प्रतापगढ़  अवध 

14.02.2013 11.45 मध्याह्न 

Views: 745

Comment

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Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on February 26, 2013 at 11:02pm

आदरणीय डाक्टर अजय जी वासन्ती रंग ने आप को लुभाया आप ने सराहा मन खुश हुआ कृपयामार्गदर्शन करते रहें


आभार आप का प्रोत्साह्ञ हेतु
भ्रमर ५

Comment by seema agrawal on February 26, 2013 at 11:01pm

वाह वाह वाह भ्रमर जी क्या चित्रण किया है ऋतु बसंत का ....उपवन में ही ला दिया आपके शब्दों ने 

मलयानिल बढ़ी खोलि दिए हैं 

पतझर के दिन बीते रे सजनी !

कोंपल-हरि  मन जीत लिए हैं 

कूके कोयलिया मन बागन में 

बौर सना रस प्रीति  सुधा जिमि 

पवन मंद ज्यों बेल लिपटि फिर 

दूर भये व्याकुल चितवन करि...आनंद आ गया 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on February 26, 2013 at 11:00pm

आदरणीय वागी जी मन अभिभूत हुआ रचना प्रकृति की कुछ छटा दिखला सकी सुन खुशी हुई
लिखना सार्थक रहा कृपयामार्गदर्शन करते रहें


आभार आप का प्रोत्साह्ञ हेतु
भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on February 26, 2013 at 10:55pm

प्रिय संदीप जी रचना को आप का मान मिला वसन्ती रंग छा गया
आभार आप का प्रोत्साह्ञ हेतु
भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on February 26, 2013 at 10:54pm

वेदिका जी वसन्ती रंग से रंगी ये रचना आप के मन को छू सकी सुन हर्ष हुआ
आभार आप का प्रोत्साह्ञ हेतु
भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on February 26, 2013 at 10:52pm

आदरणीय सौरभ भ्राता श्री आप के शब्द यों ही सुनने को मिलते रहें तो कोशिशें ज़रूर कामयाब होंगी
ब्रज भाषा के तड़के से मधुरता आई रचना मे सार्थकता सुन खुशी हुई आभार आप का प्रोत्साह्ञ हेतु
भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on February 26, 2013 at 10:46pm

आदरणीय कुशवाहा जी आप आए बहार आई आभार आप का प्रोत्साह्ञ हेतु
भ्रमर ५

Comment by Dr.Ajay Khare on February 18, 2013 at 11:31am

BHAVAR JI SUNDER PRAKRATI CHITRAN BADHAI


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 16, 2013 at 12:14pm

आदरणीय भ्रमर जी प्रकृति का अद्भुत वर्णन आपने इस रचना के माध्यम से किया है, अच्छी रचना लगी , बधाई स्वीकार करें ।

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 16, 2013 at 11:39am

आदरणीय भ्रमर सर जी सादर 
बहुत सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये 

कृपया ध्यान दे...

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