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ऋतुराज बसंत(कुण्डलिया)

पीले पीले वेश में ,आया आज बसंत
परिवर्तन की गोद में ,जा बैठा हेमंत
जा बैठा हेमंत ,खेत में सरसों फूली
महक उठा ऋतुकंत,प्रेयसी झूला झूली
रसिक भ्रमर को भाय,मनोहर वदन सजीले
कह ऋतुराज बसंत ,अमिय रस पीले पीले

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 12, 2013 at 3:18pm

आदरणीय सलिल जी का एक उदाहरण =ज्ञ = आधा ग + य
विज्ञ = (वि + आधा ग) + य = २ + १ = ३
ज्ञान की मात्रा ३ होगी, पर विज्ञान की मात्रा ५ होगी को देखते हुए और उच्चारण को देखते हुए मैंने मात्रा मनोग्य में 5 गिनी है


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 12, 2013 at 3:18pm

जी जी आदरणीया राजेश जी बिलकुल.... हर संशय का निराकरण होना बहुत ज़रूरी है. सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 12, 2013 at 3:06pm

प्रिय प्राची जी आपको बसंत पर ये कुण्डलियाँ अच्छी लगी हार्दिक आभार आपका इशारा मनोग्य कि मात्रा पर है शायद मैं भी लिखते हुए अटक रही थी अभी भी संशय है और विद्वत्‌ जनों की राय और जान लूँ फिर ठीक कर लूँगी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 12, 2013 at 2:54pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी,

कल रात को ही ऋतुराज बसंत पर अपने बेटे को हिन्दी में निबंध लिखवा रही थी, तो सोचा था कि इसी शीर्षक से आज बसंत की सुरम्यता पर एक कुण्डलिया लिखूँगी... 

आपकी कुण्डलिया पढ़ कर मन प्रसन्न हो गया... बहुत सुन्दर वर्णन किया है आपने बसंत का , बहुत बहुत बधाई.

,मनोग्य वदन सजीले...........इस पंक्ति को एक बार पुनः देख लीजिये आदरणीया. सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 12, 2013 at 2:09pm

अरुण कुमार अभिनव जी आपको ये कुण्डलिया रुचिकर लगी इस हेतु हार्दिक आभार|

Comment by Abhinav Arun on February 12, 2013 at 1:57pm

कम शब्दों में सारगर्भित इस रचना के लिए आदरणीया राजेश जी हार्दिक बधाई वसंत वर्णन सुन्दर और समीचीन है !!

कृपया ध्यान दे...

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