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मकर संक्रान्ति : कुछ तथ्य // --सौरभ

मकर संक्रान्ति का पर्व हिन्दुओं के अन्यान्य बहुसंख्य पर्वों की तरह चंद्र-कला पर निर्भर न हो कर सूर्य की स्थिति पर निर्भर करता है. इस विशेष दिवस को सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं.

पृथ्वी की धुरी विशेष कोण पर नत है जिस पर यह घुर्णन करती है. इस गति तथा पृथ्वी द्वारा सूर्य के चारों ओर वलयाकार कक्ष में की जा रही परिक्रमा की गति के कारण सूर्य का मकर राशि में प्रवेश-काल बदलता रहता है. इसे ठीक रखने के प्रयोजन से प्रत्येक अस्सी वर्षों में संक्रान्ति के समय को एक दिन के लिए बढ़ा दिया जाता है या तदनुरूप नियत कर लिया जाता है. आज के समय में गणना के अनुसार मकर-संक्रान्ति 14 या 15 जनवरी को मनायी जाती है.

प्रस्तुत आलेख में हम इन गणनाओं से संबंधित कुछ रोचक तथ्य जानने का प्रयास करते हैं. जिससे संक्राति के बारे में रोचक तथ्य तो स्पष्ट तो होंगे ही, यह भी प्रमाणित होगा कि प्राचीन हिन्दु-पंचांग की गणना-अवधारणाएँ कितनी सटीक और दूरगामी हुआ करती थीं जो आज भी सार्थक हैं ! भारतीय पंचांग के अनुसार गणनाएँ नक्षत्रों या सितारों के समुच्चय (constellation of stars) की सापेक्ष गति के अनुसार तय होती हैं. ध्यातव्य है कि सितारों की दूरियों और उनकी गतियों की गणनाएँ सामान्य अंकीय राशियों (general mathematical digits) से कहीं बहुत बड़ी राशियाँ होती हैं. हमें सादर गर्व होता है अपने पूर्वजों और भारतीय मनीषियों पर जिन्होंने गणनाओं की उस समय ऐसी तकनीकि विकसित कर ली थी जब अन्य मतावलम्बियों द्वारा इतनी बड़ी अंक-राशियाँ सोची तक नहीं गयी थीं.

पृथ्वी की सूर्य के चारों ओर की परिक्रमा को क्रांति-चक्र कहते हैं. परिक्रमा के कक्ष को भारतीय ज्योतिष में 12 भागों में बाँटा गया है. इन्हें राशियाँ कहते हैं. इन बारह राशियों का नामकरण 12 नक्षत्रों के अनुरूप किया गया है. इसीकारण, भारतीय पंचांग के अनुसार एक वर्ष में कुल बारह संक्रान्तियाँ होती हैं जिन्हें चार वर्गों में बाँटा जाता है.

1. अयन अथवा अयनी संक्रान्ति
मकर संक्रान्ति और कर्क संक्रान्ति दो अयन या अयनी संक्रान्तियाँ हैं जिन्हें क्रमशः उत्तरायण और दक्षिणायण संक्रान्ति भी कहते हैं. वैचारिक रूप से और गणनाओं के अनुसार ये संक्रान्तियाँ ऋतुओं में क्रमशः शरद और ग्रीष्म ऋतु में उन घड़ियों की परिचायक हैं जब पृथ्वी का विषुवत भाग (equator) सूर्य से सर्वाधिक दूरी पर होता है. किन्तु कालान्तर में राशियों के अनुसार सूर्य की स्थिति में और ऋतु के अनुसार सूर्य की स्थिति में मूलभूत अंतर आता चला गया. इसका मूल कारण पृथ्वी का अपने अक्ष (axis) पर साढ़े 23 डिग्री नत होना तथा उसी पर घुर्णन (revolve) भी करना है. माना जाता है कि हज़ारों वर्षों के पश्चात ऋतुओं और राशियों के अनुसार सूर्य की स्थिति में पृथ्वी के सापेक्ष अपने आप ही पुनः एका हो जायेगा, जैसा कि प्रारंभ मे हुआ करता होगा. इस तरह अयन या अयनी संक्रान्तियाँ स्वतः ऋतुओं के समकक्ष आ मिलेंगीं. इस तथ्य को हम आगे और ठीक से देखंगे कि यह अंतर कितना है और प्राचीनकाल से गणनाओं को कैसे साधा गया है.

प्राचीन भारतीय ज्योतिष जो कि गणनाओं के लिहाज़ से विश्व की किसी आधुनिक खगोल-गणना प्रणाली के समकक्ष या कई अर्थों में उससे भी उन्नत ठहरता है. कैसे ?  आइये समझने का प्रयास करते हैं.

पृथ्वी के नत-अक्ष पर हो रही घुर्णन गति, पृथ्वी के सूर्य के चारों ओर अपने कक्ष में परिक्रमा करने की गति और नक्षत्रों या सितारों के समुच्चय (constellation of stars) की गति, तीनों गतियों के समवेत मिलान पर भारतीय ज्योतिष निर्भर करता है और गणनाएँ इन तीनों गतियों के अनुसार निर्धारित होती हैं. फिर भी, समझने की बात यह है कि भारतीय ज्योतिष नक्षत्रों की गति और पृथ्वी की घुर्णन और सूर्य के चारों ओर की परिक्रमा की गति के पारस्परिक मिलान को अधिक महत्व देता है. इस तरह के नक्षत्रीय गणना विधान को निर्णय-ज्योतिष कहते हैं. पृथ्वी के अक्ष पर के झुकाव व घुर्णन को ज्योतिष के अनुसार अयन-अंश कहते हैं. पाश्चात्य ज्योतिषी, कहते हैं कि, मूलतः अक्षांश रेखाओं की स्थिति पर ही निर्भर होते हैं जिसे सयाना-ज्योतिष कहते हैं.

जब सूर्य छः मास के लिए उतरी गोलार्ध (northern hemisphere) में होते हैं तो इसे सूर्य का उत्तरायण होना कहा जाता है. ठीक इसके विपरीत सूर्य का छः मास हेतु दक्षिणी गोलार्ध (southern hemisphere) में होना उनका दक्षिणायण होना कहलाता है. पृथ्वी के अक्ष (axis) पर झुकाव व घुर्णन के कारण इसी उत्तरायण और दक्षिणायण के काल (time) में परिवर्तन हो जाता है, जिसकी चर्चा हम ऊपर कर चुके हैं. यानि होता है यह है कि सूर्य देव मकर संक्रान्ति के 24 दिनों पूर्व ही उत्तरी गोलार्ध की ओर बढ़ना प्रारंभ कर देते हैं. यानि, मकर संक्रान्ति जो कि अमूमन 14 या 15 जनवरी को पड़ती है, इस हिसाब से इसे 24 दिनों पूर्व ही पड़ जानी चाहिये, यानि तब, जबकि सूर्य दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध की ओर बढ़ना प्रारंभ करते हैं. यानि, 21 या 22 दिसम्बर को ही !


वैदिक ज्योतिषी और पंचांगकर्ता इस तथ्य से पूरी तरह से अवगत होते हुए भी काल-गणना में कोई परिवर्तन नहीं करते. इसके पीछे बड़ा कारण जैसा कि कहा जा चुका है, हिन्दु-पंचांग या हिन्दु-कैलेण्डर की मुख्य गणनाएँ पृथ्वी की दोनों तरह की गतियों के सापेक्ष नक्षत्रों की स्थिति और गति के अनुरूप तय होती हैं. अतः, अपने निकट के आकाश में दिखते सूर्य की पृथ्वी की गति के सापेक्ष की गति के लिहाज से हुआ कोई परिवर्तन पंचांग की पूरी अवधारणा और उसकी मूल गणनाओं को ही छिन्न-भिन्न कर रख देगा. इस तरह, नक्षत्रों की स्थिति ही हिन्दु-पंचांग का मूल है. प्राचीन हिन्दु ज्योतिषी पृथ्वी की गति और स्थिति के सापेक्ष अपनी आकाश गंगा (Milky-way) की समस्त गतियों पर आधारित काल-गणना को मान्यता देते थे, जिसके कारण हजारों-हजार साल बाद भी खगोलीय गणनाएँ आजतक इतनी सटीक बनी हुई हैं. 

इस हिसाब से देखा जाय तो सूर्य और पृथ्वी की सापेक्ष गति के कारण पृथ्वी के गोलार्धों में सूर्य के पदार्पण का दिखता समय और संक्रान्तियों के मान्य समय के मध्य आये लगभग 24 दिनों के अंतर के बावज़ूद पार्श्व में (यानि, दिख रहे आकाशीय गतियों के और भी पीछे, दूर आकाश में) नक्षत्रों और सितारों की स्थिति ठीक वही होती है जो इन संक्रान्तियों के होने का मूल तथ्य है. यानि, 21 या 22 दिसम्बर को ही भले सूर्य उत्तरी गोलार्ध की ओर बढ़ते दीखें, परन्तु, नक्षत्रों की खगोलीय स्थिति के अनुसार पृथ्वी पर वह समय मकर संक्रान्ति का हुआ ही नहीं करता. बल्कि वह समय मकर संक्रान्ति के लिए 14 या 15 जनवरी को ही होता है.

यानि, हिन्दु-पंचांग पृथ्वी के निकट के आकाशीय पिण्डों यानि सूर्य आदि की दीखती हुई गतियों यानि शारदीय या ग्रीष्मीय विस्थापनों का संक्रान्तियों की काल-गणना के लिहाज़ से अवहेलना करता है. यानि, भारतीय जन-मानस में इस लिहाज से सूर्य का महत्व उसकी ऊर्जा और चैतन्यप्रदायी शक्तियों के कारण है, नकि उसकी पृथ्वी के सापेक्ष हो रही गति के कारण है. इस तरह, हिन्दु मतावलम्बी मकर संक्रान्ति को ठीक उसी दिन मनाते हैं जब नक्षत्र के अनुसार सूर्य उत्तरायण होते हैं. और, धार्मिक अनुष्ठानों या पर्व संबंधी अन्य कार्यों के लिए ऋतुओं (शरद और ग्रीष्म) में सूर्य और पृथ्वी के मध्य दीखती दूरी या उनके मध्य प्रतीत सापेक्ष गति को कोई महत्व नहीं देते.

ठीक यही सूर्य के दक्षिणायण होने के समय भी होता है. तब सूर्य 21 या 22 जून को ही पृथ्वी की स्थिति के अनुसार दक्षिणी गोलार्ध की ओर बढ़ जाते हैं जबकि कर्क संक्रान्ति 15 या 16 जुलाई को मनायी जाती है. कारण वही है, पृथ्वी के सापेक्ष आवश्यक नक्षत्रों की बन गयी स्थिति और उनकी तदनुरूप खगोलीय गति.

2. विषुव या सम्पात संक्रान्ति
मेष संक्रान्ति और तुला संक्रान्तियाँ दो विषुव या सम्पात संक्रान्तियाँ हैं जिन्हें क्रमशः वसंत सम्पत और शरद सम्पत भी कहते हैं.

3. विष्णुपदी संक्रान्ति
सिंह संक्रान्ति, कुंभ संक्रान्ति, वृषभ संक्रान्ति और वृश्चिक संक्रान्ति, ये चार विष्णुपदी संक्रान्तियाँ हैं.

4. षड्शितीमुखी संक्रान्ति
मीन संक्रान्ति, कन्या संक्रान्ति, मिथुन संक्रान्ति और धनु संक्रान्ति, ये चार षड्शितीमुखी संक्रान्तियाँ हैं.

यह तो हुई ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार संक्रान्तियों की बात. संक्रान्ति का मूल अर्थ परिवर्तन-काल ही होता है. संक्रान्तियों के समय पृथ्वी, इसका वायुमण्डल, इसका वातावरण, इसकी प्रकृति, जीव-जन्तु सभी हर तरह के परिवर्तन से गुजरते होते हैं. मकर संक्रान्ति के समय शरद काल से ग्रीष्म काल को अपनाता मानव-शरीर अत्यंत नाज़ुक दौर से गुजरता होता है. अतः यह समय आयुर्वेदीय तथा धार्मिक महत्व का होने के साथ-साथ यह समय मनोवैज्ञानिक महत्व का भी होता है.

मकर संक्रान्ति का पौराणिक महत्व
संक्रांति को देवी माना गया है. ऐसी कथा प्रचलित है, कि, संक्रांति नाम की देवी ने संकरासुर दानव का इसी दिन वध किया था. इसी कारण कृतज्ञ मानव-समुदाय इस काल विशेष को संयम और आदर पूर्वक मनाता है. यदि संकरासुर के प्रतीक पर विशेष ध्यान दें तो संकर का अर्थ दो संज्ञाओं के मेल से उत्पन्न विकार होता है. यह संकरासुर तामसिक गुणों का प्रतीक व परिचायक है. इस मान्यता की ओट में समस्त विकारों से निजात पाने की अवधारणा कितनी खूबसूरती से मान्य हुई है, यह तथ्य आधुनिक ज्ञाताओं के लिए भी रेखांकित करने योग्य है !

इस दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक वातावरण अधिक चैतन्यमय हो जाता है. साधना करने वाले को इस चैतन्य का लाभ मिलता है. मकर संक्रान्ति भारत के हर भू-भाग में विभिन्न नामों से मनायी जाती है, यथा, पंजाब और हरियाणा आदि क्षेत्रों में लावणी, सिंधी भाइयों के लिए लोही, असम में बिहू, दक्षिण भारत विशेषकर तमिळनाडु में पोंगल, पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के पश्चिमी क्षेत्र में खिचड़ी और मिथिलांचल में संकराएत आदि. किन्तु, मूल अवधारणा हर स्थान पर एक ही है, नवान्न के प्रति स्वीकार्य का भाव तथा भौगोलिक परिवर्तनों यानि संक्रान्ति-काल को जीवन में स्वीकार कर उसके अनुरूप स्वयं को सपरिवार, स-समाज ढालना.

सूर्य का उत्तरायण में आना जीवन, चेतना, तथा सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है. मकर संक्रान्ति का पर्व मना कर हम जीवन के प्रति सकारात्मकता और ऊर्जस्वी दृष्टि का आह्वान करते हैं.

पद्म पुराण, मत्स्य पुराण और महाभारत के अनुशासन पर्व में माघ मास का महात्म्य वर्णित है. तीर्थराज प्रयाग के त्रिवेणी-संगम पर मकर संक्रान्ति में स्नानादि का विशेष महत्व है. रामचरितमानस  में गोस्वामी तुलसीदासजी की प्रसिद्ध चौपाई है -

माघ मकर गत रवि जब होई । तीरथपतिहि आव सब कोई ॥
देव दनुज किन्नर नर श्रेणी । सादर मज्जहिं सकल त्रिवेणी ॥
पूजहिं माधव पद जलजाता । परसि अक्षयवट हरषहिं गाता ॥
को कहि सकिहि प्रयाग प्रभाऊ । कलुष पुंज कुंजर मृग राऊ ॥

लेकिन संगम ही नहीं, अन्य पवित्र नदियों जैसे कि गंगा, यमुना, गोदावरी, कावेरी आदि में भी स्नान और उनके घाटों पर दान आदि की विशेष महत्ता बतायी गयी है.

एक तथ्य यह भी है कि गंगा का पृथ्वी पर अवतरण इसी दिन मकर संक्रान्ति को हुआ माना गया है, जिन्होंने राजा भगीरथ के आह्वान पर और कठोर तप के पश्चात राजा सगर के साठ हजार शापित पुत्रों का उद्धार करना स्वीकार किया था.

इस तरह सूर्य की पूजा-अर्चना का पर्व मकर संक्रान्ति भारतीय संस्कृति का एक उदात्त एवं महान पर्व है.

************************
--सौरभ

 

मकर संक्रांति पर और भी जानकारी हेतु पढ़े ...     मकर-संक्रान्ति पर विशेष

 

ज्ञातव्य :
प्रस्तुत आलेख प्राप्त जानकारी तथा उपलब्ध साहित्य पर आधारित है एवं चित्र गूगल सर्च से लिये गये हैं । 

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Comment

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 14, 2013 at 2:32pm

मकर संक्राति पर बहुत ही ज्ञानवर्धक और तथ्यपरक आलेख आपने प्रस्तुत किया है आदरणीय सौरभ भईया, या यह कहे कि तथ्यों को निचोड़कर आपने गागर में सागर भर दिया है तो अतिश्योक्ति न होगी । बहुत बहुत बधाई इस जानकारी पूर्ण आलेख हेतु।

Comment by मनोज साह on January 14, 2013 at 12:16pm

सौरभ भाई आपको भी मकर संक्रांति की हार्दिक बधाई...  आशा है आपको मेरा एक ब्लॉग भी बहुत पसंद आएगा जो इसी विषय पर लिखा गया है दक्षिणायन से उत्तरायण होने का पर्व...

अवश्य पढे

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on January 14, 2013 at 11:42am

आदरणीय गुरुदेव सौरभ जी, 

सादर  अभिवादन 

महत्वपूर्ण जानकारी साझा करने हेतु आभार 

पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 14, 2013 at 11:37am

मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं आदरणीय सौरभ जी।

मकर संक्रांति तिथि निर्धारण से सम्बंधित विस्तृत जानकारी, पौराणिक कथा, और इसके महत्त्व का उल्लेख करते इस शुभ सार्थक आलेख के लिए हृदय से आभार। 
सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 14, 2013 at 8:40am

आदरणीय सौरभ जी मकर सक्रांति की विस्तृत जानकारी से भरे इस आलेख के लिए बहुत बहुत बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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