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जिंदगी से मौत ही भली

जिन्दा हूँ इसलिए की कुछ और पाप कटे ,
वर्ना ये जिंदगी से मौत ही भली। 

मिल जाते हैं हर मोड़ पर दुआ सलाम वाले ,
खैर ख्वाहों की गिनती में रहती उंगलियाँ खाली।

हर कदम पे मेरे रोड़े बहुत मिले ,
काश उनको मैं पहचानता नहीं।

मैं भी जानता बहुत को इसी जिंदगी में ,
काश रोज रोजलोग बदलते नहीं। 

जिन्दा हूँ इसलिए की सभी पाप कटे
फिर ये जिंदगी मुझे गवारा नहीं।

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 2, 2013 at 3:48pm

प्रयासरत रहें, भाईजी.

Comment by ashutosh atharv on December 31, 2012 at 1:56pm

श्याम नारायण वर्मा जी को धन्यवाद

Comment by ashutosh atharv on December 31, 2012 at 1:55pm

ओ बी ओ प्रबंधन को मेरी कविता स्वीकार करने को बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by Shyam Narain Verma on December 31, 2012 at 11:50am

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