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जो हमें बरसों से हरदम चीट ही करते रहे

जो हमें बरसों से हरदम चीट ही करते रहे

मसअले दर मसअले वो ट्वीट ही करते रहे

 

खर्च करने के लिए इमदाद में आई रकम

पंचतारा होटलों में मीट ही करते रहे

 

जो हमें समझा किये कीड़े मकोडों की तरह

हम खुदा की तरह उनको ट्रीट ही करते रहे

 

नाम उनका हर दफे ही लिस्ट से गायब रहा

साल के दर साल वो कम्प्टीट ही करते रहे

 

हमने आपस में जिसे था कब का ही सुलझा लिया

वो उसी मुद्दे को हरदम हीट ही करते रहे

 

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Comment by rajesh kumari on December 3, 2012 at 10:12pm

वाह आदरणीय राणा  प्रताप जी हिंदी, उर्दू ,इंग्लिश तीनो भाषाओं का संगम देखने को मिल रहा है ग़ज़ल में रोचक प्रयोग दाद कबूल कीजिये इस पीस के लिए |

Comment by रविकर on December 3, 2012 at 8:50pm

खुबसूरत प्रस्तुति के लिए -
आभार आदरणीय |

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on December 3, 2012 at 4:19pm

राणा भाई नमस्कार ...यार बेहद खूबसूरत ढंग से आपने अंगेजी काफ़ियों का इस्तेमाल किया है....हर एक शेर लाजवाब । नाव प्रयोग के लिए आपको बहुत बहुत मुबारकबाद ! दिली दाद कुबूल करें !

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on December 3, 2012 at 8:11am

बहुत दमदार गज़ल, इस शेर के लिए विशेष दाद कबूलें आदरणीय राणा जी,

जो हमें समझा किये कीड़े मकोडों की तरह

हम खुदा की तरह उनको ट्रीट ही करते रहे

Comment by वीनस केसरी on December 2, 2012 at 11:54pm

बहुत खूब राणा भाई इस ग़ज़ल को आपसे साक्षात सुनने का सुनहरा मौका गंवाने का सख्त अफ़सोस है
अगली बार जरूर सुनेगे

शानदार ग़ज़ल और विशेष तौर पर कवाफी के सुन्दर निर्वहन के लिए विशेष बधाई स्वीकार करें

Comment by UMASHANKER MISHRA on December 2, 2012 at 10:31pm

वाह शायरी में बेहेतारिन अंदाज में अंग्रेजी का प्रयोग किया है हर शेर मजेदार है 

जो हमें समझा किये कीड़े मकोडों की तरह

हम खुदा की तरह उनको ट्रीट ही करते रहे.....एक दम सटीक है

हम जिन्हें खुदा की तरह मानते है वो हमें कीड़े मकोड़े की तरह ....समझते है

मजा आगया आदरणीय

बधाई ही बधाई  

 

 

 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 2, 2012 at 2:24pm
बेहतरीन गजल लगी बधाई  
चमचो से सदा घिरे रहे कानो के कच्चे रहे 
हमें तो हर बात पर चार्जशीट ही करते रहे ।
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on December 2, 2012 at 12:51pm
खर्च करने के लिए इमदाद में आई रकम

पंचतारा होटलों में मीट ही करते रहे
नए अंदाज़ में अंग्रेज़ी कवाफ़ी से सजी बेहतरीन प्रेरणास्पद ग़ज़ल भाई राणा जी! बधाईयां..
Comment by अरुन 'अनन्त' on December 2, 2012 at 11:39am

आज के हालात को बयां करती बेहतरीन ग़ज़ल

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