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आदरणीय सौरभ जी, आपकी टिप्पणी से बड़ी राहत मिली । ओ बी ओ में ही मुकरियों पर आपका एक आलेख भी मिला जिससे जितना कुछ अबतक सीख पाया मैंने प्रस्तुत किया । प्रयास जारी रखूंगा, सादर
//मुस्टंडा है बेहद बकटेट //
हा हा हा हा... हार्दिक धन्यवाद स्वीकार करें, आदरणीय राजेशभाईजी. वाह ! इसे कहते हैं संवेदनशीलता और पद्य विन्यास का साहस !
वस्तुतः, बहुत ही महीन लकीर है, आंचलिक शब्द-प्रयोग में और भदेसपन में. अभी तक अच्छे-अच्छों को यहाँ फँसते देखा है हमने. तो कुछ इस अंतर की महीनी समझ ही नहीं पाते. कारण कि, रचनाकार थोड़ा भी असंयत हुआ नहीं कि अच्छी-खासी कोशिश मोरी में बही दिखती है.
कुल मिला कर मुकरियों पर आपका प्रयास बेहतर और रुचिकर हुआ है.
राजेश भाईजी, आपकी रचनाओं पर यथोचित दृष्टि बनी रहती है. आपका स्वाध्याय और रचना-कर्म सतत बने.
शुभेच्छा
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