मोटी-चमड़ी पतला-खून ।
नंगा भी पहने पतलून ।
भेंटे नब्बे खोखे नोट -
भांजे दर्शन अफलातून ।
भुना शहीदी दादी-डैड
*शीर्ष-घुटाले लगता चून ।
*सिर मुड़ाना / चोटी के घुटाले
पंजा बना शिकंजा खूब-
मातु-कलेजी खाए भून ।
मिली भगत सत्ता पुत्रों से
लूटा तेली लकड़ी-नून ।
दस हजार की रविकर थाल
उत फांके हों दोनों जून ।
Comment
दस हजार की रविकर थाल
उत फांके हों दोनों जून । ...... वाह ! क्या कहने ! खूब कहा आपने !
//मुझे तो समझ ही नहीं आती है यह विधा-
पर आकर्षक लगती है-//
आजकल गंगा अविरल धार में है. आप अवश्य हाथ माँज लें, प्रभु.
पता नहीं आदरणीय सौरभ जी -
मुझे तो समझ ही नहीं आती है यह विधा-
पर आकर्षक लगती है-
अपनी तरफ से कुछ आशीष देने का कष्ट करें-
कृपा होगी ||
मैंने आ. वीनस जी से भी यह निवेदन किया हुआ है-
सादर ||
आदरेया सीमा जी का आभार ||
बहन शालिनी का आभार ||
आदरणीय बागी जी आभार |
ग़ज़ब का सटायर भाई रविकर जी. इस तंज पर अब क्या कहूँ, शक्करपारे में आपने गोया निबौरी भर दिया है.
लेकिन ग़ज़ल की शिल्प पर अभी बहुत कुछ करना है, प्रभु. ग़ज़ल की बह्र क्या रखा है या मिसरों को आपने किस वज़्न में बाँधने की कोशिश की है, यदि आप साझा करें तो आगे कुछ कहना संभव हो सके.
भुना शहीदी दादी-डैड
*शीर्ष-घुटाले लगता चून ।
very nice presentation
छोटी बहर पर अच्छी ग़ज़ल , बधाई आदरणीय रविकर जी ।
आपका विशेष तीखा अंदाज़ आपकी ग़ज़ल में भी बरकरार है
पंजा बना शिकंजा खूब-
मातु-कलेजी खाए भून ।
दस हजार की रविकर थाल
उत फांके हों दोनों जून ।
बधाई रविकर जी
आदरणीय भाई वीनस जी -
आपकी गजल कक्षा से भी सीखने की कोशिश कर रहा हूँ-
कुछ टिप्स इस रचना पर भी मिले तो अच्छा -
गजल के हिसाब से इसमें क्या क्या कमी है-
हमेशा जानना चाहूँगा -
और अगली बार उस पर भी काम करूँगा -
कृपया--
सादर |
दस हजार की रविकर थाल
उत फांके हों दोनों जून ।
वाह वा वा ....
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