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वो छूटीं प्यार की बातें....


जो बातें प्यार की छूटीं हैं अब तक,
आज करनी हैं …
सुनो जी काम छोड़ो , पास बैठो…
शाम की गाड़ी पकड़नी है ….

वो पैंतीस साल पहले रात,
जो आई सुहानी थी…
वो गुजरी रात मे अभिसार की,
प्यारी कहानी थी ….

वो जो छूटीं रहीं इनकार मे थीं …
प्यार की बातें….
वो जो मूंदीं ढकीं इनकार मे थीं ,
प्यार की बातें….

वो जिनके बीच
मुन्नू और चुन्नू का बहाना था…
वो जो इनकार मे इकरार का ही
एक फसाना था…

नही आती मुझे ज्यादा,
कभी श्रंगार की बातें
यही कारण था कि,
छूटीं रहीं अभिसार की बातें….

कि दिन ढलने लगा है अब ,
मचलती शाम आई है…
हमारी डूबती नब्ज़ों को,
यह पैग़ाम लाई है…

जो छूटीं थी अभी तक आज कर लो,
प्यार की बातें ….
कभी अभिसार की बातें,
कभी इकरार की बातें….

सुनो देखो न यूँ रूठो,
न शर्माने का यह पल है…
कि अपना प्यार अब, परवान चढ़ जाए
यह वो पल है …

सुनो अच्छा करो वादा
कि हम जाएँ जहाँ तक भी…
हमारे प्यार मे हरदम,
यही दम हो यही खम हो…

डॉ बृजेश कुमार त्रिपाठी

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 26, 2010 at 12:02pm
श्रींगार रस की बेहतरीन कृति, रवानगी ऐसी जैसे शांत पतली सी नदी बहती हो, बहुत बढ़िया डॉ. साहब, इस रचना को गाया जा सकता है |
Comment by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 25, 2010 at 6:26pm
प्रीत जी ,आशीष जी राणा प्रताप जी ... उत्साह वर्धन करने के लिए आभार आपको मेरी कृति पसंद आई तो मेरा लेखन सफल हुआ
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on October 25, 2010 at 11:45am
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है ब्रिजेश साहब....पढ़ के मन खुश हो गया साहब...
Comment by आशीष यादव on October 23, 2010 at 3:19pm
sundar abhiwyakti sir, bahut hi achchha laga.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on October 22, 2010 at 7:04pm
आदरणीय डा० ब्रिजेश कुमार त्रिपाठी सर
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

सुनो अच्छा करो वादा
कि हम जाएँ जहाँ तक भी…
हमारे प्यार मे हरदम,
यही दम हो यही खम हो…

बधाई कबूल करें
Comment by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 22, 2010 at 4:17pm
नवीन जी, मेरे भाई
आप प्रतिक्रिया दे रहे हैं तो यह अधिकार भी तो आपका ही है,कि इसे जो चाहें दर्जा दें
मैं तो आपके द्वारा दिए गए हर शब्द को अपना पुरुस्कार समझता हूँ ..आपको मेरी रचना अच्छी लगी ..मेरा कृतित्व सफल हुआ ..आपके कॉमेंट्स मेरे लिए बहुमूल्य हैं ...धन्यवाद्

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