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ग़ज़ल"कटाने सर कफ़न बांधे खड़ा अंजाम क्या देखे"

===========ग़ज़ल===========
बहरे- हजज
वजन- १ २ २ २- १ २ २ २- १ २ २ २- १ २ २ २

सिपाही मुल्क की सरहद पे सुबहो शाम क्या देखे
कटाने सर कफ़न बांधे खड़ा अंजाम क्या देखे

गरीबी ने मिटा डाला जिसे खाने के लाले हैं
चलाने अपना घर अच्छा बुरा वो काम क्या देखा

बना माँ बाप को अपना खुदा पूजा करो यारो
है जिसका घर यहाँ मंदिर वो तीरथ धाम क्या देखे

मिटा अभिमान खुद का कर रहा काली कमाई जो
सियासी बन गया अब नाम क्या बदनाम क्या देखे

बना आतंकवादी अब खड़ा बन्दूक ताने यूँ
जो छीने जिन्दगी पल में वो अल्ला-राम क्या देखे

संदीप पटेल "दीप"

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Comment

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Comment by Rekha Joshi on October 10, 2012 at 7:34pm

बना माँ बाप को अपना खुदा पूजा करो यारो 
है जिसका घर यहाँ मंदिर वो तीरथ धाम क्या देखे ,अति सुंदर अभिव्यक्ति संदीप जी ,बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 10, 2012 at 6:04pm

क्या भाई ? एकदम से साथ बहा ले गये ! वाह !

वैसे, इस मिसरे को पुनः देखें... बह्र के हिसाब से नहीं बल्कि गेयता के हिसाब से...

चलाने अपना घर अच्छा बुरा वो काम क्या देखा

ग़ज़ल की विधा में आपका प्रयास मुग्ध करता है.  बधाई.. .

 

Comment by MARKAND DAVE. on October 10, 2012 at 2:18pm

जो छीने जिन्दगी पल में वो अल्ला-राम क्या देखे ।

 

बहुत ही सुंदर रचना, अभिनंदन और धन्यवाद ।

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 10, 2012 at 11:28am

आदरणीय वीनस सर जी कृपया ये स्नेह और सहयोग सहित मार्गदर्शन यूँ ही बनाये रखिये अनुज के प्रति आभारी हूँ आपकी हौसलाफजाई और जर्रानवाजी के लिए

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 10, 2012 at 11:27am

आदरणीया डॉ. प्राची जी ...आदरणीय राजेश झा जी,, आदरणीय नादिर जी... आदरणीय वीनस सर जी आप सभी को सादर प्रणाम
आप सभी मेरी कही ग़ज़ल को वक़्त दिया और सराहा इसके लिए मैं आप सभी को तहे दिल से शुक्रिया
साथ साथ आप सभी का इस स्नेह के लिए आभारी हूँ
स्नेह बनाये रखिये अनुज पर यूँ ही

Comment by वीनस केसरी on October 10, 2012 at 2:34am

वाह वाह संदीप जी
पिछले कुछ दिन से आपकी ग़ज़लों के स्तर में एक बड़ी उछल देखने को मिली है
हुजूर आपके शेयर का भाव बढता जा रहा है :) :) :)

यह ग़ज़ल भी हाई रेटेड जा रही है
जय हो


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 9, 2012 at 5:38pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल संदीप जी 

उच्च कहन युक्त हर शेर के लिए हार्दिक बधाई .

Comment by नादिर ख़ान on October 9, 2012 at 5:04pm

जो छीने जिन्दगी पल में वो अल्ला-राम क्या देखे

बहुत उम्दा बात कही, लोग ईश्वर  के नाम पर लड़ते है पर उसे  पहचानते नहीं ।

Comment by राजेश 'मृदु' on October 9, 2012 at 5:02pm

बहुत सुंदर संदीप जी

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