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कभी कभी इस दिल में सिसक उठती थी,
की शायद वो दिन भी आयेंगे जब हम भी अपना घर बनायेंगे !
या फिर यूँ ही किराये के मकान में अपना सारा जीवन बिताएंगे !!

माता-पिता की जिम्मेदारियां  इतनी थी की ऐसा ख्वाब भी उन्हें नसीब न था..
कभी हम भी यही सोचा करते थे की क्या हम भी कभी उनका हाथ बटा पाएंगे !!

जिम्मेदारियों के साथ-साथ  बढ़ती महंगाई का साया था..
चाहते हुए भी कभी  घर का सपना बुनना शायद सपने की परछाई थी !
माँ की बीमारियों के साथ, पढाई का खर्च भी उठाना था ,
शायद यही सबसे बड़ी पिता की कमजोरी थी जिसको सबसे छुपाना था !!

और हम बस यही सोचते रहे की हमें अपना खुद का आशियाना बनाना था,
आज  सब कुछ पा लिया हमने लेकिन अब नहीं वो जमाना था !
आज समय किसी के पास नहीं जो रिश्तों का सबसे बड़ा खजाना था !
इससे अच्छा तो बचपन में हमारा वो किराये का आशियाना था !!

रचनाकार-
मुकेश शर्मा, उज्जैन.

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Comment by Mukesh Sharma on September 25, 2012 at 11:18pm

धन्यवाद् सतीश जी !!

Comment by Mukesh Sharma on September 25, 2012 at 11:18pm

धन्यवाद् योगी जी...

Comment by Satish Agnihotri on September 25, 2012 at 11:04pm

हमारी बधाई भी स्वीकार कीजिये ....

Comment by Yogi Saraswat on September 25, 2012 at 10:50am

जिम्मेदारियों के साथ-साथ  बढ़ती महंगाई का साया था..
चाहते हुए भी कभी  घर का सपना बुनना शायद सपने की परछाई थी !
माँ की बीमारियों के साथ, पढाई का खर्च भी उठाना था ,
शायद यही सबसे बड़ी पिता की कमजोरी थी जिसको सबसे छुपाना था !!

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