राजनीति के मंच पर, चढ़ गए आज दबंग
फूट फूट कर रो रहे, ध्वज के तीनों रंग
गधा जो देखन मैं चला, गधा न मिलया मोय
तब इक नेता ने कहा, मुझसा गधा न कोय
उजली खादी पहन के, करते काले काम
इनका बंटाधार अब, करदो मेरे राम
अभिव्यक्ति को घोंट कर, करो जेल में बन्द
लोकराज के नाम पर, करते जाओ गन्द
हाय हमारे मुल्क का, फूटा हुआ नसीब
उसने ही विष दे दिया, समझा जिसे तबीब
-जय हिन्द !
Comment
BAHOOT KHOOBSURAT
धन्यवाद भाई कुमार गौरव जी................
आभारी हूँ
धन्यवाद लड़ी वाला जी................
आभारी हूँ
आभारी हूँ आदरणीय सौरभ जी.......
आपका मार्गदर्शन मिलता रहा तो सब ठीक हो जायेगा ...........
सादर
वाह वाह ! क्या जबर्दस्त कहन है इन दोहों की !! विशेषकर
राजनीति के मंच पर, चढ़ गए आज दबंग
फूट फूट कर रो रहे, ध्वज के तीनों रंग
मानों आपके अंदर का रचनाकार हृदय को काढ़ कर कह रहा हो.
प्रस्तुत दोहों के शिल्प पर सभी सुधीजनों ने सम्यक और सटीक बात कही है. सदस्यों की इस प्रासंगिकता पर मन मुग्ध है. आप भी अपने छंदों पर साहित्य मर्मज्ञों की सटीक सलाह पर संतुष्ट होगें, ऐसा पूर्ण विश्वास है, भाईजी. आप तदनुरूप प्रयास करेंगे, इस अपेक्षा के साथ सादर प्रणाम
धन्यवाद योगी जी...........
सादर
गधा जो देखन मैं चला, गधा न मिलया मोय
तब इक नेता ने कहा, मुझसा गधा न कोय
उजली खादी पहन के, करते काले काम
इनका बंटाधार अब, करदो मेरे राम
हहहाआआआआआ , मज़ा आया अलबेला साब ! आपकी ही रचना ऐसी हो सकती है मस्त ,बिंदास
भाई श्री अलबेला जी, सुंदर व्यंगात्मक दोहों
जय हो अलबेला जी ! :-)))
वाह-१०००००००००००००००००००...............सभी दोहे जबरदस्त हैं पर वो गधे वाला थोडा खास :)))))
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