For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

'हम नहीं सुधरेंगें' (लघुकथा)

 

बिरादरी में ऊँची नाक रखने वाले, दौलतमंद, पर स्वभावतः अत्यधिक कंजूस, सुलेमान भाई ने अपने प्लाट पर एक घर बनाने की ठानी| मौका देखकर इस कार्य हेतु उन्होंने, एक परिचित के यहाँ सेवा दे रहे आर्कीटेक्ट से बात की| आर्कीटेक्ट नें उनके परिचित का ख़याल करते हुए, बतौर एडवांस, जब पन्द्रह हजार रूपया जमा कराने की बात कही, तो सुलेमान भाई अकस्मात ही भड़क गए, और बोले, "मैं पूरे काम के, किसी भी हालत में, एक हजार से ज्यादह रूपये नहीं दूंगा! यह सुनकर वह आर्कीटेक्ट वापस चले गए|  इधर सुलेमान भाई ने भी सस्ते में ही, एक दो मंजिला शानदार घर बनवा डाला| इस बात को एक महीना भी नहीं बीता, तभी किसी व्यापारिक कार्यवश दिल्ली प्रवास के दौरान, सुलेमान भाई को खबर मिली कि, उनके शहर में एक तेज भूकंप आया है| हड़बड़ी में गिरते-पड़ते किसी तरह जब वे अपने घर पहुँचे, तो उन्होंने पाया कि परिचित का घर तो सीना ताने उनके सामने खड़ा था पर, मलवे की शक्ल में तब्दील उनके सपनों का घर, सारे परिवार को स्वयं में दफ़न किये हुए, उनकी कंजूसी को लगातार मुँह चिढ़ा रहा था | यह देखकर वे विक्षिप्त से हो उठे और अपना सिर जमीन पर पटकने लगे |

अकस्मात कन्धे पर किसी का सांत्वना भरा हाथ पाकर, उन्होंने आँसुओं से भरा हुआ स्वयं का चेहरा ऊपर उठाया, तो पाया कि, वही आर्कीटेक्ट, स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद से, मलवे से सुरक्षित निकाली हुई, उनकी तीन वर्षीय जीवित पोती को गोद में उठाये हुए, उन्हें सकुशल सौंप रहे थे....... जिसे उन्होंने एकबारगी तो अपने कलेजे से लगा लिया किन्तु अगले ही पल उसे गोद से उतारा और आसमान की तरफ हाथ उठाकर बोले ऐ पाक परवरदिगार! ये क्या किया ! इससे तो अच्छा था मेरे फरीद को बचा लेते ....आखिर मेरा वंश तो चलता !

--अम्बरीष श्रीवास्तव

Views: 750

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 13, 2012 at 9:36am

आदरेया रेखा जोशी जी, इस लघुकथा को पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद !

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 12, 2012 at 8:44pm

आदरणीय अशोक जी, सच कहा आपने ....लघुकथा की सराहना के लिए हार्दिक आभार स्वीकारें ! भाईजी ! .सुलेमान साहब के कुछ पुण्यकर्म थे जिनसे उनकी पोती जीवित बच गयी...पर कंजूसी से बचाया गया नंबर एक व नंबर दो का धन समूल रिकार्ड सहित इसी मलवे की भेंट चढ़ गया.....

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 12, 2012 at 7:59pm

आदरणीय अम्बरीश जी

                 सादर प्रणाम,शुक्र है वह बच्ची जीवित बची वरना कंजूसी से बचाया धन किस काम आता. हर जगह कंजूसी ठीक नहीं सुन्दर संदेशात्मक लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 12, 2012 at 6:51pm

आदरेया रेखा जी आपने सच कहा ! अत्यधिक कंजूसी कभी-कभी बहुत भारी पड़ जाती है ! फिर भी शुक्र है कि उसी  आर्कीटेक्ट की मदद से सुलेमान भाई की पोती तो सही सलामत मिल गयी !सादर

Comment by Rekha Joshi on September 12, 2012 at 5:32pm

सार्थक लघुकथा आदरणीय अम्बरीश जी ,लोग थोड़ा पैसा बचाने के चक्र में भारी नुक्सान कर लेते है ,हार्दिक बधाई 

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 12, 2012 at 4:04pm

आदरणीय कपूर रस्तोगी जी, इस लघुकथा  को पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद ! 

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 12, 2012 at 11:00am

स्वागत है आदरेया सीमा जी, लघुकथा के सम्पूर्ण  मर्म तक पहुँच कर बधाई प्रेषित करने के लिए आपके प्रति हार्दिक आभार आदरेया !

Comment by seema agrawal on September 12, 2012 at 10:15am

सस्ता रोये एक बार ,महँगा रोये बार बार .........पर सुलेमान भाई को उनकी कंजूसी ज़िंदगी भर का रोना दे गयी सावधान करती लघुकथा ...बधाई अम्बरीश जी 

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 12, 2012 at 10:00am

स्वागत है डॉ० प्राची जी, आपने बिल्कुल सही समझा ....कथा के मर्म तक पहुँचने के लिए हार्दिक धन्यवाद स्वीकारें ....सस्नेह


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 12, 2012 at 9:51am

विशेषज्ञ की राय के बिना भूकंप संभावित क्षेत्रों में बिना मानकों का पालन कर के निर्माण कार्य करवाने की कितनी भारी कीमत अदा करनी पड़ सकती है, यह जाहिर करती इस लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय अम्बरीश जी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"सादर प्रणाम🙏 आदरणीय चेतन प्रकाश जी ! अच्छे दोहों के साथ आयोजन में सहभागी बने हैं आप।बहुत बधाई।"
18 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी ! सादर अभिवादन 🙏 बहुत ही अच्छे और सारगर्भित दोहे कहे आपने।  // संकट में…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"राखी     का    त्योहार    है, प्रेम - पर्व …"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"दोहे- ******* अनुपम है जग में बहुत, राखी का त्यौहार कच्चे  धागे  जब  बनें, …"
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service