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ओबीओ में विशाल मेंला लगा था
छंद कवियों का तांता लगा था |

मैंने वहां ;दोहा;नाम से कविता दागी

प्राचार्य ने यह दोहा नहीं कह हटा दी |

मैंने फिर छन्-पकैयां लिख लगा दिए

गुरुवर ने नरम हो कुछ सुझाव दिए |

एक अलबेला कूद पड़े बोंले मानलो

सिष्य से प्राचार्य बना देंगे जानलो |

गुरुवर बोंले ये कर्म योगी का मंच है

यहाँ न कोई पञ्च और न सरपंच है |

मैंने भी सिष्य बन सीखने की ठान ली

'धरम' से 'अम्बर' तक की बात मानली |

एक दिन सक्रियता का प्रमाणपत्र आया

मेरा मन ख़ुशी से फूला नहीं समाया |

मैंने संकल्य लिया आचार्य नहीं बनना है

मुझे तो योग्य शिष्य बन सीखते रहना है |

योगीजी बोले अग्रज सीखने की उम्र नहीं होती

काव्य-रस में रमते गए, क्षुधा शांत नहीं होती |

सिखाने सिखाने का ओबीओ अनूठा मंच है,

यहाँ न कोई पञ्च है, न ही कोई सरपंच है |

-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर

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Comment

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 5, 2012 at 6:19pm

हार्दिक धन्यवाद आदरनीय रेखा जोशी जी |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 5, 2012 at 6:16pm

आदरनीय डॉ.प्राची सिंह जी, आपके अदगार, आपकी टिपण्णी मेरे में और जोश भर देती है |उत्साहित करने और रचना पसंद करने पर आपका हार्दिक आभार |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 5, 2012 at 3:20pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लाडिवाला जी  बहुत सुन्दर मनोभाव अभिव्यक्ति इस अनूठे मंच ओबीओ के प्रति.. आपका यह सीखने सिखाने का सुन्दर सफ़र यूँ ही अनवरत चलता रहे यही शुभेच्छाएं है. सादर.

Comment by Rekha Joshi on September 5, 2012 at 12:26pm

सिखाने सिखाने का ओबीओ अनूठा मंच है, 
यहाँ न कोई पञ्च है, न ही कोई सरपंच है | ,ओ बी ओ को समर्पित खूबसूरत रचना ,बधाई 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 5, 2012 at 9:36am

धन्यवाद श्री वीनस कसरी जी 

Comment by वीनस केसरी on September 5, 2012 at 1:52am

१६ आने सच कहा ....

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 4, 2012 at 3:08pm
हार्दिक धन्यवाद फूल सिंह जी स्नेह बनाए रखे और इस मंच की 
उपयोगिता समझे 
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 4, 2012 at 3:06pm
हार्दिक धन्यवाद मेरी भावनाओं को समझने के लिए भाई श्री अशोक कुमार रक्तालेजी 
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 4, 2012 at 3:04pm

आपके कथानक ने मेरे उदगारो में पहिये लगा दिए |

मे २०११-१२ में जो सीख पाया, उसे गत ३ दिन से सोच कर 
इस शिक्षक दिवस पर सबके सामने दिल से/समर्पित भाव
से सबके सामने रखना चाह रहा था | आपका एवेम ओ बी 
ओ प्रबंधन टीम का हार्दिक आभार |
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 4, 2012 at 2:56pm

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय संदीप द्वेदी वाहिद कशिवासिजी, आपने मेरे विचारो की पुष्टि कर मन को और द्रदता प्रदान की है |

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