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बेवफा ही रहो

बेवफा ही रहो

बेवफा थे बेवफा हो बेवफा ही रहो

यह मुहब्बत नहीं बस की यूँ न इज़हार करो
बेवफा थे बेवफा हो बेवफा...........
यह वोह जज़्वा है जो आशिक़ को अमर करता है
वोह तो हँसते हुए सब कुछ ही फनां करता है
जो उम्र भर किया तुमनें हर बार करो
बेवफा थे बेवफा हो बेवफा...........
दीपक 'कुल्लुवी' को मुहब्बत यहाँ कोई कम न मिली
बेशक काँटों की कली दिल में बार  बार खिली  
गम की इस दिल में जगह ख़ाली है कुछ और भरो 
बेवफा थे बेवफा हो बेवफा...........
दीपक कुल्लुवी
29 अगस्त 2012
9350078399

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Comment by Deepak Sharma Kuluvi on September 1, 2012 at 11:25am

SHUKRIYA JANAW.

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 31, 2012 at 8:22pm
आदरणीय दीपक जी शंका-समाधान हूआ।
सादर
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 31, 2012 at 8:22pm
आदरणीय दीपक जी शंका-समाधान हूआ।
सादर
Comment by Deepak Sharma Kuluvi on August 30, 2012 at 9:47am

बेवफा थे बेवफा हो बेवफा ही रहो

यह मुहब्बत नहीं बस की ,यूँ न इज़हार करो
 
त्रिपाठी जी 
बस की के बाद  कोमा लग जाता तो भाव साफ़ हो जाता  मेरी ही गलती रही 
बो ऐसा है एक बेवफा बार बार पयार का इजहार करती फिर धोखा दे देती  इसीलिए प्रेमी कह रहा है यह मुहब्बत तुम्हारे बस की बात नहीं  यूं न इज़हार करो  तुम बेवफा थी .हो और रहोगी 
 
त्रिपाठी जी यह हकीकत है.....?
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 29, 2012 at 7:02pm
आदरणीय दीपक कुल्लवी जी!
"यह मुहब्बत नहीं बस यूं की न इजहार करो।"
इस पंक्ति का अर्थ नहीं स्पष्ट कर पा रहा हूं ।पहले इसका भाव स्पष्ट कीजिए फिर टिप्पणी करुंगा।
सादर

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