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ग़ज़ल - तेरी याद माँ चाशनी है

 
ग़ज़ल - तेरी याद माँ चाशनी है
 
हवा में नमी कुछ बढ़ी है ,
मगर अब भी नीयत वही है |
 
रहा है भंवर का ये हासिल
किनारे पे नौका लगी है |
 
वो हसरत जो पूरी नहीं हो ,
यकीनन वही ज़िन्दगी है |
 
गरजकर हैं लेते परीक्षा ,
बरस जाएँ तो बंदगी है |
 
ग़ज़ल शेर चुनती है ऐसे ,
कलम कट गयी रोपनी है |
 
हैं बेकार मतलब के रिश्ते ,
तेरी याद माँ चाशनी है |
 
लबादे मुखौटे मुलम्मे ,
किसे हम कहें आदमी है |
 
पिसा पटरियों सा हमेशा ,
मेरी ज़िन्दगी रेल सी हैं |
 
           - अभिनव अरुण
              [25082012]
 

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Comment by Abhinav Arun on August 27, 2012 at 3:40pm
 
 बहुत आभार आपका श्री योगी जी ग़ज़ल आपको पसंद आई प्रयास सार्थक हुआ , आपके शब्द मेरे संबल हैं !
Comment by Yogi Saraswat on August 27, 2012 at 10:33am
हैं बेकार मतलब के रिश्ते ,
तेरी याद माँ चाशनी है |
 
लबादे मुखौटे मुलम्मे ,
किसे हम कहें आदमी है |
बहुत  सुन्दर अलफ़ाज़ , अरुण साब !
Comment by सूबे सिंह सुजान on August 26, 2012 at 10:08pm

जी, कोई बात नहीं .......

Comment by Abhinav Arun on August 26, 2012 at 10:01pm
 बहुत बहुत आभार श्री सुजान जी सहयोग बना रहे यही कामना है  |
Comment by सूबे सिंह सुजान on August 25, 2012 at 5:07pm

वाह-वाह खूब है.........

Comment by Abhinav Arun on August 25, 2012 at 12:02pm

बहुत बहुत आभार श्री संदीप जी अरसे  बाद कलम चलाई है...एक प्रयास है .. आप सबका स्नेह है !!

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on August 25, 2012 at 11:57am

आदरणीय अरुण भईया!

एक से बढ़ कर एक अश'आर से सजी आपकी यह ग़ज़ल बेहतरीन है! किसी एक शे'र का उल्लेख करना सरासर ज़्यादती होगी! अंतिम शे'र के लिए ख़ास दाद क़ुबूल फ़रमाएं! सादर,

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