For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नेताजी (कुण्डलिया -३)
 
नेता जी की ख्वाहिशें, बढ़े खूब व्यापार,
नेतानी की राह पर, सामाजिक उपकार |
सामाजिक उपकार, करें जब भी नेतानी,
धन लुटवाए कुढें, कि, चले नहीं मनमानी |
घोटालों के रिस्क, कमाई तिगडमबाजी,
समझे नहिं नादान, सोचते थे नेताजी ||

Views: 373

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 16, 2012 at 2:43pm
 इस कुण्डलिया प्रयास को सराहने हेतु आपका आभार आदरणीय सौरभ सर.
कि, चले नहीं मनमानी..... यह शब्द भाव को और उस भाव के कारण को भी पूर्णता से व्यक्त कर रहे हैं..
इस परिवर्तित संवर्धित पंक्ति का स्वागत है. सादर.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 16, 2012 at 10:31am

बेहतर प्रयास हुआ है.

धन लुटवाए कुढें, चले नहिं पर मनमानी |

इस पंक्ति की गेयता को और साधा जा सकता है. सम चरण में पर को पहले ले कर या सम चरण को यह रूप दे कर कि, चले नहीं मनमानी.  यह अब लिखने वाले पर निर्भर करता है कि वह समुच्चय (totality) में रचना की पंक्तियों को कैसे लेता और पढ़ता है..

 

Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 15, 2012 at 9:24pm

आपका स्वागत है ! सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 15, 2012 at 12:50pm
आदरणीय अम्बरीश जी
बहुत बहुत आभार इस कुण्डलिया को सराहने व नव ज्ञान देने हेतु... ना की जगह नहिं , ही ज्यादा उपयुक्त व प्रवाहमय लग रहा है.
पुनः आभार. सादर.
Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 15, 2012 at 12:29am
//नेता जी की ख्वाहिशें, बढ़े खूब व्यापार,
नेतानी की राह पर, सामाजिक उपकार |
सामाजिक उपकार, करें जब भी नेतानी,
धन लुटवाए कुढें, चले ना पर मनमानी |
घोटालों के रिस्क, कमाई तिगडमबाजी,
समझे ना नादान, सोचते थे नेताजी ||//
कुंडलिया सुन्दर रचा, सुन्दर बना प्रवाह.
नेताजी अब चल पड़े, बाबा जी की राह..
बहुत-बहुत बधाई आपको ......
दोहों में 'ना' के बदले नहिं शब्द अधिक उपयुक्त माना गया है ......सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
18 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service