For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रूप चंदा चाँदनी सम , चाँद भी शरमाय .
ठुमक ठुम ठुम ठुमक चलना , अंगना गुंजाय .
ओढ़ चूनर राज कुँवरी , झूमती इतराय .
मत करो रे पाप मानव , भ्रूण गर्भ गिराय .
 
तोतली बोली करे है , प्रेम की बरसात .
दुख सभी के सब हरे है , हो निशा या प्रात .
नयन की भाषा पढ़े है , नयन से हर्षाय .
मत करो रे पाप मानव , भ्रूण गर्भ गिराय .
 
भ्रूण जो कन्या गिराएं , घर बनें वीरान .
संस्कृति और सभ्यता की , बेटियाँ पहचान .
फूल सी अँगना खिलें ये , ज़िंदगी महकाय .
मत करो रे पाप मानव , भ्रूण गर्भ गिराय .
 
बेटियाँ जब जन्म लें तब , संग आवें ईश .
कालि दुर्गा और सुरसति , देव दें आशीष .
समझ कर वरदान इनको , हाथ लो मुस्काय .
मत करो रे पाप मानव , भ्रूण गर्भ गिराय .

Views: 827

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rekha Joshi on July 30, 2012 at 2:02pm

 आदरणीया डा प्राची जी भ्रूण जो कन्या गिराएं , घर बनें वीरान .

संस्कृति औ सभ्यता की , बेटियाँ पहचान .
फूल सी अँगना खिलें ये , ज़िंदगी महकाय .
मत करो रे पाप मानव , भ्रूण गर्भ गिराय .,अति सुंदर छंद रूपमाला ,बधाई 


Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 30, 2012 at 12:26pm

आपका स्वागत है डॉ० प्राची जी !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 30, 2012 at 10:43am

आदरणीय सौरभ सर,

हार्दिक आभार इस छंदबद्ध प्रयास को सराह कर प्रोत्साहित करने के लिए. मेरी संलग्नता सबके लिए सुखकारी है ,ये जान कर संतोष मिला है. आप गुरुजनों से ही जाना है कि कविता सिर्फ भाव सम्प्रेषण नहीं है..... 
अब से गेयता पर भी ज़रूर ध्यान दूंगी सर.
आपकी शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार.
सादर.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 30, 2012 at 10:15am

आदरणीय अम्बरीश जी,

इस छान्दसिक रचना प्रयास को सराहने हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद.
मैंने संस्कृति की मात्र ४ गिनी थी, और तब भी लग रहा था कि यहाँ कुछ गलती कर रही हूँ. आपका आभार आपने मेरा संशय दूर किया, मैं अब संस्कृति को ५ ही गिनूँगी.
सादर.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 30, 2012 at 8:48am

मत करो रे पाप मानव, भ्रूण गर्भ गिराय .. .  वाह !

सामयिक विषय पर एक सधा हुआ प्रयास. आपकी संलग्नता और निरंतर साधना सभी  --पाठकों और रचनाकारों--  के लिये सुखकारी है. शब्द-संयोजन के साथ गेयता पर भी ध्यान देती चलें, डा. प्राची.   रचना-प्रयास हेतु बहुत-बहुत बधाइयाँ.

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 30, 2012 at 1:32am

बेटियां ही साथ देतीं, ये जगत आधार.

हैं सभी रब की धरोहर, चाहतीं सब प्यार.

दो इन्हें अब स्नेह छाया, व्यर्थ क्यों भरमाय.  

मत करो रे पाप मानव , भ्रूण गर्भ गिराय.

डॉ० प्राची जी, आपके परिपक्व रूपमाला छंद पढ़कर आज मैं अत्यधिक प्रसन्न हूँ ....इस सफलता हेतु आपको हार्दिक बधाई....

//संस्कृति और सभ्यता की , बेटियाँ पहचान //

मात्रिक दृष्टि से मेरे विचार में इसे  'संस्कृति औ सभ्यता की , बेटियाँ पहचान' करना सही रहेगा .

(संस्कृति =५ मात्रा ) इसे उच्चारण करके  देखियेगा ........सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 29, 2012 at 7:51pm
आपको यह रचना पसंद आयी, इस हेतु आपका आभार आ. सुरेन्द्र जी
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 29, 2012 at 7:34pm

रूप चंदा चाँदनी सम , चाँद भी शरमाय .

ठुमक ठुम ठुम ठुमक चलना , अंगना गुंजाय .
ओढ़ चूनर राज कुँवरी , झूमती इतराय .
मत करो रे पाप मानव , भ्रूण गर्भ गिराय .

एक से बढ़ कर एक ...बहुत सुन्दर मनोभाव और सन्देश ...बधाई हो 

.
भ्रमर ५ 

 आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी चित्र से काव्य प्रतियोगिता -१६ में अव्वल आने के लिए आप को लख लख बधाईयाँ  और हार्दिक शुभ कामनाएं  ये कारवां अपना यों ही चलता रहे महफ़िलें सजती रहें और रौशनी समाज में बिखरती रहे  

प्रिय अरुण कुमार निगम जी ( जबलपुर)   को द्वितीय और आदरणीय दिनेश 'रविकर' जी फैजाबादी  और मेरे पडोसी मित्र को भी  तृतीय स्थान अर्जन करने हेतु बहुत बहुत बधाइयाँ 
आदरणीय बागी जी , योगराज जी , अम्बरीश जी, आदि सभी मानी को भी बधाई सुन्दर आयोजन ....
..आभार 
भ्रमर ५ 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 29, 2012 at 6:32pm

इस रूपमाला छंद में निहित सन्देश व भावों को सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार आ. राजेश कुमारी जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 29, 2012 at 4:07pm

उन्नत सन्देश परक भाव बहुत सुन्दर छंद बद्ध गीत 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
2 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service