For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गृहस्थी का दायित्व 


चारो भाइयों में बड़े लडके नयन बाबू की माँ लड़को को बाहर खेलने नहीं निकलने देती थी, ताकि वे बिगड़ न जावें | अचानक माँ का देहांत हो गया | उस समय नयन बाबू 16 वर्ष और पिताजी 46 वर्ष के थे | पिता प्रभु व्यसायी और सामाजिक कार्यकर्त्ता थे | पिता ने २० वर्षीय विधवा से पुनर्विवाह कर लिया | अपनी माँ के नियंत्रण के कारण कभी घर से न निकलने वाले नयन बाबू कॉलेज में साथियों के साथ छात्र संघ में रूचि लेने लगा और छात्र संघ का महासचिव चुन लिया गया | उसकी गतिविधियाँ देखते हुए पिता ने उसे दुकान पर बैठने और आगे पढाई बंद करने को कहाँ | नयन बाबू दुकान पर बैठने लगा | वहा उसके दोस्त आते, जो पिताजी को गवारा नहीं | शिघ ही पिताजी ने उसकी पढाई छुड़ा दी और उसकी शादी रमा से कर दी |नयन बाबू ने किसी अन्य व्यक्ति को संरक्षक बना, कॉलेज मेंअगली कक्षा में दाखिला ले लिया | पता लगने पर पिताजी ने अख़बार में इश्तिहार द्वारा जन-साधारण को सूचित किया कि मेरा लड़का मेरे कहने में नहीं है | पत्नी की सलाह पर पिता ने अब उसे दुकान पर बैठने से भी मना करदिया | नयन बाबू ने अपना व्यवसाय शुरू किया | वह होशियारी से घर खर्च चलाने लायक धंधा करने लगा | एक लड़का और एक लड़की का पिता बन गया |
कुछ दिन बाद साथियों के संग गम में शराब पीनी भी शुरू कर दी | उसका एक दोस्त के घर आना जाना हुआ,जहाँ दोस्त की शादी शुदा बहिन लैला से परिचय शीघ्र ही प्यार में बदल गया और एक दिन जालोर से दोनों जोधपुर जाकर गुपचुप मंदिर में जा विवाह बंधन में बंध गए | कुछ दिन बाद रमा को जोधपुर ले जाकर अपनी दूसरी पत्नी लैला से परिचय कराया और कहाँ कि तुम दोनो ही मेरे साथ आराम से रहो | पहली पत्नी रमा ने वापिस जालोर आकर अपने सास-ससुर को बताया कि उन्होंने दूसरा विवाह रचा, जोधपुर में घर बसा लिया है | पुनः जालोर आकर नयन बाबू ने अपने पिता को फ़ोन कर विवाह की सुचना देते हुए आशीर्वाद देने को कहाँ | पिता-जी नेकहाँ कि आशीर्वाद फ़ोन पर नहीं, घर आकर लो | फिर उसने अपनी पत्नी रमा को फ़ोन कर रेलवे-स्टेशन आने को कहाँ | रमा ने आने में असमर्थता जताई | २ घण्टे बाद ही किसी ने उसके पिता को सूचित किया कि रेलवे-स्टेशनपर रेल से कटकर एक लड़का और एक लड़की ने आत्म-हत्या करली है और सुसाइड नोट में आपका पता दिया हुआ है | शीघ्र ही वहा पहुचे तो पता चला कि दोनों लाश अस्पताल के मुर्दा घर में रक्खी है | लाश की शिनाक्त कर पोस्ट-मार्टम करा, दाह-संस्कार कर दिया | 
सामाजिक मंच और व्यापारिक संघो में उच्च पदों पर रहने, और विधवा विवाह कर समाज में मिशाल कायम करने वाले पिता प्रभु को अब भूल का भान हुआ कि मै बच्चो की परवरिश करने, और गृहस्थी संभालने कि जिम्मेदारी निभाने में लापरवाह रहा, यह इसीका परिणाम है | और 46 वर्ष कि उम्र में पुनर्विवाह कर बच्चो की 
सौतेली माँ लानेके बजाय लडके का ही विवाह कर, बहु ले आता तो सुखी गृहस्थी का दायित्व निर्वाह करना ज्यादा ठीक रहता | लडके नयन को दुकान न आने देकर, अलग करने के कारण और उसकी गतिविधियों पर ध्यान न देनेके कारन लड़का खो देने का दुःख दिल को कचोटता रहा | अब उन्हें अहसास हुआ की पहले वाली
पत्नी का कठोर नियंत्रण, पुनर्विवाह के बाद लडके पर शुरू में ध्यान न देने और फिर उसे गृहस्थी और व्यापार से अलग कर देने के कारण अपना बड़ा बेटा खो बैठा |
 
 -लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला

Views: 580

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 22, 2012 at 11:08am

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय रेखा जोशीजी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 18, 2012 at 5:03pm

आदरणीय श्री अलबेला खत्रीजी, और सुरेन्द्र कुमार भ्रमर जी, 

आप द्वारा कहानी को मार्मिक बता, उम्दा कहकर  कहानी की सार्थकता सिद्ध करदी |
हार्दिक धन्यवाद और आभार 
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 18, 2012 at 4:59pm

आदर.राजेश कुमारी जी, कहानी पसंद आई, मेरा उत्साह बढ़ा | आपने इसका उपसंहार लिख दिया-

अब पछताए हॉट क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत -क्या बात है, हार्दिक आभार  
Comment by Rekha Joshi on July 17, 2012 at 9:48pm

आदरणीय लक्ष्मण जी ,बहुत ही मार्मिक अंत ,घर का मुखिया होने के नाते वह अपनी गृहस्थी को ठीक से संभाल नही पाया और अपना बेटा खो दिया |अच्छे लेखन पर बधाई 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 17, 2012 at 9:05am

आदरणीया राजेश कुमारी जी, आपकी पंक्तिया "अब पछताए होत क्या,जब चिड़िया चुग गई खेत "|कहानी का आपने मुझे सारांश बता दिया, हार्दिक धन्यवाद | 

आद. सुरेन्द्र कुमार भ्रमर जी, और अलबेला खत्रीजी आपने कहानी के मर्म को पहचान उत्साह वर्धन
किया, हार्दिक आभार |

 

 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 16, 2012 at 10:43pm

पिता प्रभु को अब भूल का भान हुआ कि मै बच्चो की परवरिश करने, और गृहस्थी संभालने कि जिम्मेदारी निभाने में लापरवाह रहा, यह इसीका परिणाम है | और 46 वर्ष कि उम्र में पुनर्विवाह कर बच्चो की 
सौतेली माँ लानेके बजाय लडके का ही विवाह कर, बहु ले आता तो सुखी गृहस्थी का दायित्व निर्वाह करना ज्यादा ठीक रहता 

आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत सुन्दर ..सार्थक और मार्मिक कहानी ...आँखें तो बाद में ही खुलती हैं पहले तो आत्म विश्वास खो भावावेश में बह जाता है आदमी ..लेकिन हर चीज का कुछ प्रभाव होता है इतना सहज नहीं ऐसे कृत्य को अमली जामा पहना जिन्दगी प्यार से काट लेना घर परिवार को ले के ....

भ्रमर ५ 

 

Comment by Albela Khatri on July 16, 2012 at 7:56pm

is kahaani ne marm ko chhua.............

umda kahaani

__abhinandan !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 16, 2012 at 7:17pm

एक परिवार के इर्द गिर्द घूमती कहानी है जिसमे बच्चे को बचपन में कठोर नियंत्रण सोतेली माँ का घर में आ जाना बच्चे में असुरक्षा और परिवार के प्रति विरक्ति के बीज पनपना ही कारण बन जाता है एक दिन उसकी मौत का  

अब पछताय होत क्या जब चिडिया चुग गई खेत  बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती कहानी बहुत अच्छी लगी बधाई आपको 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
5 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
18 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service