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फ़ोकट की तुकबन्दी सारी बाबाजी

हांग कांग  की छटा है प्यारी बाबाजी
पर भारत  की बात ही न्यारी बाबाजी

प्यार मिला, सम्मान मिला इस महफ़िल में
ओ बी ओ पर मैं बलिहारी बाबाजी

रूपया रोक न पाया ख़ुद को गिरने से
डॉलर ने  वो  बाज़ी मारी बाबाजी

ममता,ललिता,सुषमा तीनों गायब हैं
तन्हा रह गये अटल बिहारी बाबाजी

कौन बनेगा सदर हमारे भारत का
ये भी संकट है इक भारी बाबाजी

चाट पकौड़ी खाओ,  किरपा आएगी
कहते  बाबा लीलाधारी  बाबाजी

'अलबेला' की इस रचना पर लानत है 
फ़ोकट की तुकबन्दी सारी बाबाजी

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Comment

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Comment by Albela Khatri on June 25, 2012 at 11:30am

हा हा हा ..........वाह राजेश कुमारी जी...तो आप आ गये हो ताल ठोंक कर मैदान में....लेकिन एक बात कहता हूँ ...कहना मत किसी से...

मैंने दादाजी को छोड़ कर बाबाजी को इसलिए स्वीकार किया है  क्योंकि बाबाजी बहुत रंगीले  और परिवर्तनशील हैं....आप जानते ही हैं कि पहले पिता के पिता  यानी दादाजी को बाबा कहा जाता था  और आजकल बेटे के बेटे  यानी पोते को बाबा कहा जाता है ...इतना क्रांतिकारी  किरदार और कहाँ   मिलेगा .....आपकी दादीजी तो पहले भी दादीजी ही थी..और आगेभी दादीजी ही रहने वाली हैं.....हा हा हा

परिवर्तन की कोई गुंजायश नहीं,,,,,,,,,,,



सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 25, 2012 at 11:24am

कैसे कहें हम इश्क़ ने हमको क्या-क्या खेल दिखाये ... .

ख़ैर, आपने मान दिया है तो सिर आगे किये प्रस्तुत हूँ ! .. :-)))

Comment by Albela Khatri on June 25, 2012 at 11:23am
आनन्द करो प्यारे भाई कुमार गौरव जी.........
Comment by Albela Khatri on June 25, 2012 at 11:18am

आदरणीय  सौरभ जी........
आप जब भी  बोलते हैं
रस घोलते हैं
आपकी बेबाकी  आपकी पहचान है  और मेरे लिए अनुकरणीय..........
___सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 25, 2012 at 11:13am
 शब्द वार ये झटपट करता दादी जी      
 ये अलबेला बहुत है नटखट दादी जी
Comment by Albela Khatri on June 25, 2012 at 11:07am

अब सब का ठेका क्या अकेले मैंने ले रखा है राजेश कुमारी जी ?
दादाजी को मैंने पकड़ लिया ....दादी जी  को आप देख लो....हा हा हा

____आपकी सराहना   के लिए धन्यवाद

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 25, 2012 at 10:55am
"भैँस का दूध"...हा...हा...हा, अलबेला भैया, आपकी इसी हाजिरजवाबी का तो कायल हूँ। स्नेह बनाए रखिएगा।
Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 25, 2012 at 10:51am
आदरणीया राजेश जी, सही याद दिलाया आपने। जयललिता जी को तो मैँ भूल ही गया था।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 25, 2012 at 10:50am

'अलबेला' की इस रचना पर लानत है
फ़ोकट की तुकबन्दी सारी बाबाजी.. . 

ग़ज़ब.. ग़ज़ब.. ग़ज़ब !  साहब, आईना हाथ में हो तो फिर बात ही क्या है ! अलबत्ता, अक्सर लोग किन्हीं आँखों की भंगिमाओं का आसरा और अनुमोदन चाहने के फेर में अतुकांत होते चले जाते हैं .. .

बहुत-बहुत बधाई .. .

Comment by Albela Khatri on June 25, 2012 at 10:47am

प्यारे भाई कुमार गौरव अजीतेंदू जी ! नाराज़गी और आप से ?  सवाल ही कहाँ पैदा होता है भाई ?  आपने कौन सी मेरी भैंस  का दूध  दूह लिया  ? हा हा हा ........

रहा प्रश्न  ललिता का ....जानते नहीं  ललिता को..........कमाल है  अरे भाई जयललिता  ! प्यार से आदमी कभी कभी पूरा नाम नहीं लेता ..समझ गये न ?

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