कितने ही प्रतिष्ठित समाजसेवी संगठनों में उच्च पद-धारिका तथा सुविख्यात समाज सेविका निवेदिता आज भी बाल श्रम पर कई जगह ज़ोरदार भाषण देकर घर लौटीं. कई-कई कार्यक्रमों में भाग लेने के उपरान्त वह काफी थक चुकी थी. पर्स और फाइल को बेतरतीब मेज पर फेंकते हुए निढाल सोफे पर पसर गई. झबरे बालों वाला प्यारा सा पप्पी तपाक से गोद में कूद आता है.
"रमिया ! पहले एक ग्लास पानी ला ... फिर एक गर्म गर्म चाय.........."
दस-बारह बरस की रमिया भागती हुई पानी लिये सामने चुपचाप खड़ी हो जाती है.
"ये बता री, आज पप्पी को टहलाया था?"
"माफ़ कर दो मेम साब, सारा दिन बर्तन मांजने, घर की सफाई और कपडे धोने में निकल गया इस लिए आज पप्पी को टहला नहीं पाई...."
Comment
चरित्र और चरित का विरोधाभास! सुन्दर प्रस्तुति!
aadarniy kushwaha ji, isi ko kahte hai kathni kuch aur karni kuch aur | isi trah in mukhota lagaye logo se savdhan karte rahiyega |
यही हो रहा है. मंच के भाषण और अपने जीवन-यापन में परिभाषायें भिन्न भिन्न हो गई हैं. भाषणबाजों तक यह लघु कथा पहुँचे.कुछ तो सुधार हो.
धन्यवाद आदरणीय उमा शंकर जी, समर्थन हेतु. सादर
आदरणीय गुरुदेव सौरभ जी,
सादर
आपकी आज्ञा शिरोधार्य , आभार हर एक चीज हेतु. शिष्य हूँ. इतना ही कहने की स्थिति में हूँ.
बिलकुल सही कथा
आज समाज में ऐसे ही बहुरूपिये लोग बहुत मिलेंगे
जिनकी कथनी और करनी अलग अलग होती है
बहुत बढिया
समाज में व्याप्त दोहरे मानदण्ड को आपने बखूबी उभारा है. इस सशक्त लघुकथा के लिये आदरणीय प्रदीप जी आपको सादर बधाइयाँ.
शिल्प की कसौटी पर सधी हुई इस लघुकथा के लिये विशेष साधुवाद. अलबत्ता रमिया द्वारा कहलाये गये वाक्य को थोड़ा और क्रिस्प बनाया जा सकता था. दस-बारह बरस की घबराई हुई बच्ची के लिये अपनी मालकिन के सामने इतना कुछ एक वाक्य में कहना सहज न रहा होगा.
सादर
आदरणीय नीलांश जी, सादर
सराहना हेतु आभार
aadarniya pradeep ji ,ek acchi laghu katha
saadar
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