For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पानी के थपेडों से आ तुझ को बचा लूँ  
जीवन की डगर कठोर आ गोदी में उठा लूँ
मासूम सी कली तू बगिया में खिली है 
थे कांटे वहाँ भी जिस घर में पली है 
चुन लूँ तेरे कांटे जीवन संवार लूँ
पानी के थपेडों से आ तुझ को बचा लूँ
जीवन की डगर कठोर आ गोदी में उठा लूँ

बचपन में तेरे माँ बाप यों सो गए 
खा गया था काल तुम थे रो रहे 
पालूंगा मैं तुझको सौ जीवन उधार लूँ
पानी के थपेडों से आ तुझ को बचा लूँ
जीवन की डगर कठोर आ गोदी में उठा लूँ

देता हूँ तुझे शिक्षा आन बान की 
रखना तू लाज मेरे घर की शान की  
कर दूँ तुझे विदा जीवन सुधार लूँ
पानी के थपेडों से आ तुझ को बचा लूँ
जीवन की डगर कठोर आ गोदी में उठा लूँ

बेटी तू इस घर की उस घर को जाएगी 
देखे हैं जो सपने उनको सजाएगी 
सपने जो हैं तेरे उन्हें साकार कर लूँ
पानी के थपेडों से आ तुझ को बचा लूँ
जीवन की डगर कठोर आ गोदी में उठा लूँ

Views: 516

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 15, 2012 at 3:04pm

आदरणीय अलबेला खत्री जी, सादर अभिवादन 

आपने सराहा , तृप्ति हुई. धन्यवाद.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 15, 2012 at 3:00pm

आदरणीय अविनाश जी, सादर 

मर्म को जाना. बधाई 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 15, 2012 at 2:59pm

आदरणीय बिश्वजीत जी, सादर 

आपको गीत पसंद आया. धन्यवाद.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 15, 2012 at 2:58pm

आदरणीय मनु  जी,  सादर 

बधाई स्वीकार है. धन्यवाद.

Comment by Albela Khatri on June 13, 2012 at 8:03pm

बहुत भावुक कर दिया प्रदीप जी,
इतना कोमल,  इतना मर्मान्तक  और इतना  उत्तम गीत प्रस्तुत करने पर आपका अभिनन्दन !
जय हो !

Comment by AVINASH S BAGDE on June 13, 2012 at 7:07pm

पानी के थपेडों से आ तुझ को बचा लूँ
जीवन की डगर कठोर आ गोदी में उठा लूँ
Pradeep ji,
jane kis kali ko kendrit kar aap ye rachana pesh kar rahe hai pata nahi kinu hai marm-sparshi..
shayad kuchh log ro bhi le...

Comment by Bishwajit yadav on June 13, 2012 at 2:16pm
प्रणाम प्रदीप जी
बहुत सुन्दर क्या बात है
ये पक्तियाँ मेर दिल को छु गई वैसे ये पुरा गीत अच्छा लगा जय हो
बेटी तू इस घर की उस घर को जाएगी
देखे हैं जो सपने उनको सजाएगी
सपने जो हैं तेरे उन्हें साकार कर लूँ
पानी के थपेडों से आ तुझ को बचा लूँ
जीवन की डगर कठोर आ गोदी में उठा लूँ
Comment by जगदानन्द झा 'मनु' on June 13, 2012 at 2:07pm

बहुत ही उम्दा रचना, बधाई स्वीकार करे प्रदीप जी ....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service