For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुझे तो देख के जोरों से मेरा दिल धडकता है

तुझे तो देख के जोरों से मेरा दिल धडकता है

जिये पानी बिना मछली के जैसे मन तडपता है

जिगर को थाम के बैठूं मैं अक्सर सामने तेरे

के हाले दिल सुनाने को ये पागल दिल मचलता है

मैं चातक सा फिरूँ राहों में स्वाती बूँद का प्यासा

अगर तुम ना दिखो तो हो के व्याकुल दिल तरसता है

बड़ा बेचैन होता हूँ तू मेरे साथ में जब हो

किसी के साथ देखूं तो कोई शोला भड़कता है

दिवाने घूमते हैं बस तेरा दीदार पाने को

हवाएँ भी हैं थम जाती दुपट्टा जब सरकता है

मेरे सागर से दिल में उठ रहीं हैं इश्क की मौजें

तुझे पाने की खातिर आँखों से सागर छलकता है

तेरे आने से रंगत बढ़ गयी बीमार चेह्रे की

किसी बंजर में जिस तरह कोई बादल बरसता है

संदीप कुमार पटेल "दीप"

Views: 711

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 17, 2012 at 6:30pm

आदरणीय पटेल जी, सादर 

दिवाने घूमते हैं बस तेरा दीदार पाने को

हवाएँ भी हैं थम जाती दुपट्टा जब सरकता है

बिखरती  है जुल्फें जब शाने पे तेरे 

घटायें मचलती हैं बरस जाने को 

बधाई.  

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 17, 2012 at 6:05pm

संदीप भाई बहुत अच्छी कोशिश और भाव लिए हुए ग़ज़ल प्रस्तुत की है आपने। रदीफ़, काफिया और हजज बहर का अच्छा इस्तेमाल किया है। लेकिन कहीं कहीं ऊला और सानी मिसरो में रफ्त नहीं है। अगर थोड़ा और मेहनत कि जाये तो ये ग़ज़ल और अच्छी हो जाएगी । जैसे कि ये शेर : बड़ा बेचैन होता हूँ तू मेरे साथ में जब हो, किसी के साथ देखूं तो कोई शोला भड़कता है।

ये मिसरा भी थोड़ा खटक रहा है :  जिये पानी बिना मछली के जैसे मन तडपता है

बधाई हो !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 17, 2012 at 5:45pm

अच्छी कोशिश को बधाई.

Comment by आशीष यादव on May 17, 2012 at 12:44pm

सुन्दर गजल कही आपने सर जी। बधाई स्वीकारिये।
आशिक के हाल-दिल को बखूबी लिखा आपने।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 17, 2012 at 12:23pm

तेरे आने से रंगत बढ़ गयी बीमार चेह्रे की

किसी बंजर में जिस तरह कोई बादल बरसता है....vaah ....vaah bahut bhaavpoorn ghazal likhi hai.

Comment by Bhawesh Rajpal on May 17, 2012 at 11:30am

मेरे सागर से दिल में उठ रहीं हैं इश्क की मौजें

तुझे पाने की खातिर आँखों से सागर छलकता है

तेरे आने से रंगत बढ़ गयी बीमार चेह्रे की

किसी बंजर में जिस तरह कोई बादल बरसता है

बहुत बढ़िया  !   

 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 17, 2012 at 11:06am
तुझे तो देख के जोरों से मेरा दिल धडकता है
जिये पानी बिना मछली के जैसे मन तडपता है

जिगर को थाम के बैठूं मैं अक्सर सामने तेरे
के हाले दिल सुनाने को ये पागल दिल मचलता है

मैं चातक सा फिरूँ राहों में स्वाती बूँद का प्यासा
अगर तुम ना दिखो तो हो के व्याकुल दिल तरसता है

बड़ा बेचैन होता हूँ तू मेरे साथ में जब हो
किसी के साथ देखूं तो कोई शोला भड़कता है

दिवाने घूमते हैं बस तेरा दीदार पाने को
हवाएँ भी हैं थम जाती दुपट्टा जब सरकता है

मेरे सागर से दिल में उठ रहीं हैं इश्क की मौजें
तुझे पाने की खातिर आँखों से सागर छलकता है

तेरे आने से रंगत बढ़ गयी बीमार चेह्रे की
किसी बंजर में जिस तरह| कोई बादल बरसता है

संदीप कुमार पटेल "दीप"

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" posted a blog post

ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है

1212 1122 1212 22/112मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना हैमगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना हैमैं…See More
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधकह दूँ मन की बात या, सुनूँ तुम्हारी बात ।क्या जाने कल वक्त के, कैसे हों…See More
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय बागपतवी  भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक  आभार "
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service