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पुनः लुंठन हो रहा चुपचाप हैं हम|
अक्षमाला पर मरण के जाप हैं हम|

 
चिर विकेन्द्रीकृत हुई केन्द्रीय सत्ता,
नव्य युग, प्राचीनता के सांप हैं हम|

 
जातिगत और व्यक्तिगत संकीर्णता है,
तुम नहीं तुम कुछ नहीं,बस आप हैं हम|

 
फिर दरकने हैं लगी प्राचीर दृढतम,
पूर्वजों की ख्याति है और श्राप हैं हम|

 
स्वयम से तुल कर नहीं देखा स्वयं को,
दंड टूटे, माप टूटा,माप हैं हम||

 

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Comment

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Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 7, 2012 at 12:56pm

आदरणीय अग्रज..

सादर वन्देमातरम|

आपका आशीर्वचन ही पर्याप्त है और यह कुछ आगे लिखने की प्रेरणा देता है..कोटिशः आभार

Comment by अश्विनी कुमार on April 5, 2012 at 11:07pm

प्रिय अनुज ,,

स्वयम से तुल कर नहीं देखा स्वयं को,
दंड टूटे, माप टूटा,माप हैं हम||

भाई काव्यात्मक टिप्पणी करना चाह रहा था लेकिन आज न जाने वाग देवी क्यों रूठी हुई हैं :(...जय भारत 

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 5, 2012 at 9:03pm

आदरणीय राजेश कुमारी जी...

आपकी उत्साहजनक प्रतिक्रया को सादर नमन और आपका आभारी हूँ|


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 5, 2012 at 8:46pm

आज  के जीवन और समाज की कटु सच्चाई से  मन के भीतर के  उवाह पोह ,द्वन्द की दशा को खूबसूरत शब्दों में बांधा है बधाई 

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 5, 2012 at 8:43pm

आदरणीय अरुण भाई..

आपकी उत्साहजनक प्रतिक्रया का कोटिशः आभार|स्नेह बनाये रखियेगा|

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 5, 2012 at 8:40pm

आदरणीय प्रदीप सर आईपीएल तो एक तरह का ट्वेंटी ट्वेंटी है..मैं तो यहाँ पूरी पारी ही खेलना चाहता हूँ..योग्य गुरुओं का सानिध्य भी है और जब गुरु ही साथ है तो गोविन्द काहे को पीछे रहेंगे?मनोबल बढ़ाने वाली प्रतिक्रया का कोटिशः आभारी हूँ|सादर वंदे 

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 5, 2012 at 8:37pm

प्रिय संदीप भाई...

आपकी प्रेरक प्रतिक्रया का कोटिशः आभारी हूँ|बस मन में जो कुछ भी है,एक वेगवान सरिता की भांति समस्त तटबंधों को तोड़ता हुआ बाहर आ जाता है...सादर वंदे

Comment by Abhinav Arun on April 4, 2012 at 1:55pm

वाह वाह मयंक जी आपकी भाषा - शिल्प के क्या कहने बहुत बहुत बधाई !!

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 4, 2012 at 1:40pm

फिर दरकने हैं लगी प्राचीर दृढतम,
पूर्वजों की ख्याति है और श्राप हैं हम|

badhai to main de raha hoon, par vahid bhai ki baat ka samarthan bhi hai. ipl shuru kar diya apne bahut khoob.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 4, 2012 at 11:47am

वाह मनोज भाई! यह केवल आप ही के बस की बात है| मैं तो कई दिनों से ख़ाक छान रहा हूँ मगर कुछ सूझ ही नहीं रहा और इधर आप दनादन चव्वे और छक्के लगाये जा रहे हैं|

फिर दरकने हैं लगी प्राचीर दृढतम,
पूर्वजों की ख्याति है और श्राप हैं हम| - क्या ख़ूब कही आपने...!!

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