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शेर या गीदड (एक व्यथा)

आज कौन शेर है ... ?
सब हैं गीदड ...और ...
शेरनियों से शादी रचाए बैठे हैं ...
वो गुर्राया करती हैं ...
हम दुबके पड़े रहते हैं ...

घर से निकल कर कैसे कह दूँ ?
चौका-चूल्हा, बर्तन-भांडे ...
थे कभी जो उनके हिस्से ...
आते हैं अब मेरे हिस्से ...

कोमला, निर्मला, सौंदर्या ...
अबला, पीड़ित, कुचली, प्रताड़ित ...
कितने ही उपमान पाए इन्होने ...
सभी जानते हैं असलियत इनकी ...
कौन चाहता लाँघ द्वार को ...
हो जाये यह चर्चा आम ...

देख-देख सूरत इनकी ...
होते थे पुलकित कभी ...
सूरत वही पर सीरत नयी है ...
मन वही इधर भी है ...
नासपीटी बस दहशत नयी है ...
जो होते थे कम्पायमान कभी ...
कम्पित-भूकम्पित कर डाला उन्होंने ...

कौन जाने अब क्या हो कल ...
बन छिद्रान्वेषक ...
अपनी नज़रों से ...
गुजारेंगी हर पल ...

गुजर गया जो ...
वह रूप बदल फिर आयेगा ...
पीटते-पीटते, पिटने लगे हैं ...
है यह समय का पहिया भईया ...
इसके वार से बचा न कोई ...
बदल रहा यह दौर है ...
छोड़ सजातीय विजातीय संग हैं ...
बोलो भईया शेर-शेरनी कब होवेंगे संग ?

► ...जोगेन्द्र सिंह ... Jogendra Singh ( 17 सितम्बर 2010 )

▬► NOTE :- कृपया झूठी तारीफ कभी ना करिए.. यदि कुछ पसंद नहीं आया हो तो Please साफ़ बता दीजियेगा.. मुझे अच्छा ही लगेगा..
▬► !!..धन्यवाद..!!
.

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Comment by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on September 18, 2010 at 11:22pm
@ अपर्णा जी , धन्यवाद ..............
Comment by Aparna Bhatnagar on September 18, 2010 at 10:56pm
हास्य ...भी और व्यंग्य भी ...!!!
Comment by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on September 18, 2010 at 5:32pm
हा हा हा ... @ बागी जी ... क्या आप मेरी हँसी उड़ा रहे हैं ... ?

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 18, 2010 at 4:00pm
जोगिन्दर भाई, आप की सभी रचनाओं मे अनुभवों का समावेश रहता ही है, यह कविता भी आप के अनुभवों के बल पर खुबसूरत बनी है,

कृपया ध्यान दे...

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