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चुन चुन कर जमा किये थे 

झोली में तेरे प्यार के सुमन 
एक -एक कर बाहर निकल गए  
आँचल के फटे दरवाजे से 
हाय गरीब की किस्मत !!

बादल ढूंड ही लेते हैं 
दीवार के उस झरोखे को 
जिससे मिली धूप
 में वो नहाते हैं 
हाय गरीब की किस्मत!! 

बड़े से बड़े किले भी ढह जाते हैं 
वो खंडहर में तब्दील हो जाते हैं 
पहले दीवार में फिर
 किसी नई नींव में भरे जाते हैं 
हाय पत्थर की किस्मत 
किसी गरीब से अलग नहीं !!

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Comment by rajesh kumari on February 1, 2012 at 12:29pm

dhanyavaad and aasheesh AASHEESH ji

Comment by आशीष यादव on February 1, 2012 at 12:22pm
Aaj bhi hmare desh me garibi ki yahi dasha hai. Bilkul sahi chitran hai garibi ka.

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