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सामयिक दोहे:-
------------   ---------- 

कमर-तोड़ महंगाई पे,बारम्बार चुनाव!

एक गोद में सिसक रहा,उसपे भारी पांव.
------------   ----------   -----------------  --
फिर चुनाव आये सखी,झरने लगे बयान.
अपने-अपने नेता है,अपनी-अपनी तान.
------------   ----------   -----------------  --
लोकपाल है शोक में,जोक मारते लोग.
खुद होकर पाले नहीं ,नेता कोई रोग.
------------   ----------   -----------------  --
कौव्वों की इस भीड़ में,करिए हंस तलाश.
जिन लोगों की जिद्द पे टिका हुआ आकाश.
------------   ---------- 
अविनाश बागडे.

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 7, 2012 at 2:50pm

सुन्दर गुलदस्ता बनी, दोहावली जनाब

सब दोहे खुशरंग हैं, जैसे फूल गुलाब

..

कमाल की दोहावली कही है आदरणीय अविनाश बागडे जी - वाह. बधाई स्वीकार करें. 

Comment by AjAy Kumar Bohat on January 7, 2012 at 2:01pm

वाह वाह बहुत खूब लिखा है अविनाश जी 

Comment by AVINASH S BAGDE on January 7, 2012 at 11:37am

आदरणीय बागी जी और अभिनव जी,

आपको मेरे दोहों में बात नज़र आई.
आपकी इस नज़र को सलाम.
अविनाश बागडे.
Comment by Abhinav Arun on January 7, 2012 at 8:50am

इन प्रासंगिक दोहों पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें अविनाश जी | सभी बहुत अच्छे हैं पर ये ख़ास लगा -

फिर चुनाव आये सखी,झरने लगे बयान.
अपने-अपने नेता है,अपनी-अपनी तान.
पुनः साधुवाद !!

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 6, 2012 at 9:18pm

आदरणीय अविनाश बागडे जी, सम सामयिक गतिविधियों पर आपकी बारीक नजर को दाद देता हूँ , सभी दोहे बहुत ही अच्छे बन पड़े है, बधाई स्वीकार करें |

कृपया ध्यान दे...

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