इस दिल ने नादानी में
आग लगा दी पानी में ।
वा'दे सारे खाक हुए
आया मोड़ कहानी में ।
तेरी याद चली आए
है ये दोष निशानी में ।
ना उल्फत को समझ सके
लोग फँसे नादानी में ।
या रब ऐसा क्यों होता
दर्द मिले प्यार कहानी में ।
टूटा दिल, बहते आँसू
पाए विर्क जवानी में ।
--------------- दिलबाग विर्क
Comment
Saurabh Pandey -Saurabh Ji already explained !!
aapke saath saath mujhe bhi seekhne ko mila Dilbag ji :)
bahut sundar rachna :)
इतना अवश्य है कि इस बह्र और इस काफ़िये-रदीफ़ पर बहुत कुछ हो सकता है.
मुझे आंतरिक खुशी है कि मेरा वीनसजी के साथ इस तईं सकारात्मक बातचीत हुई है. और बेहतर बातचीत हुई है. इस हेतु दिलबाग़जी को हार्दिक बधाई कि आपने ऐसी विचारोत्तेजक ग़ज़ल पोस्ट की है.
ना उल्फत को समझ सके
लोग फँसे नादानी में ।
(ना =२) लिखना गलत है क्योंकि सही होता है (न = १ )
शेर ऐसे लिख सकते हैं
उल्फत को कब समझ सके (और बेहतर किया जा सकता है)
लोग फँसे नादानी में ।
एक खास बात "समझ सके" का वज्न १२१२ होता है मगर यहाँ लय में है इसलिए छूट की वजह से यह सही है :)
इसे ऐसे लिख सकते हैं
या रब ऐसा क्यों होता
दुख हर प्यार कहानी में
अब भी और अच्छा हो सकता है
चौथे और पाँचवे शेर में अभी और काम करने की जरूरत है
दर्द मिले प्या / र कहानी में ।
२११२२ / ११२२२
इस मिसरे में एक दीर्घ ज्यादा है
आदरणीय सौरभजी और केशरीजी
प्रतिक्रिया के लिए बहुत-बहुत आभार
चौथे और पाँचवे शेर में थोडा बदलाव किया है, समय मिले तो उस पर भी राय दें
अन्य सुधीजनों से भी निवेदन है कि वे बेझिझक टिप्पणी करें ताकि सीखने में मदद मिल सके
धन्यवाद
बहुत सुन्दर दिलबाग़जी, बहुत बढिया कही आपने.
वादे सारे खाक हुए
आया मोड़ कहानी में
आपका प्रयास मन मोह गया .. बधाई स्वीकारें .
आखिरी कुछ शे’र पर थोड़ा और ध्यान देने की ज़रूरत है.
वाह वा दिलबाग साहब,
ग़ज़ल पढ़ कर दिल बाग बाग हो गया
हार्दिक बधाई
शुरू के तीन शेर खास पसंद आये
हार्दिक बधाई
मतला के लिए अलग से ढेरो दाद कबूल फरमाएं
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