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वासनात्मक प्रेम

जब वे जवान थे
वासना कुलांचे भरती थी
एक बदमास हिरन की तरह ॥

उनकी छुअन तो दूर
सिर्फ .....
यादों का झोंका
ला देता था उनमें
नई ताकत /नई उर्जा
पूरा शरीर तरंगित हो जाता था ॥

वासना की नदी पर तैरना
उनका शगल था ॥

आज वे बूढ़े है
कहते है ....
गर्म साँसे
स्पंदित नहीं करती उन्हें
यादें ....तो बस
सूखे फूल की पंखुडियो की तरह
जमींदोज़ हो रही है
एक -एक कर ॥
आलिंगन से भी
रोम-रोम पुलकित नहीं होता ॥

नहीं हो पाता
उनका मन और मष्तिस्क
उर्जा से लबरेज
अपनी प्रिय के हाथो बनी
एक कप चाय पीने के बाद भी ॥

अपने प्रिय के टूटे दांतों की हँसी
बेसुरा संगीत लगता है उन्हें ॥

मेरे प्रिय ....
क्या उनका प्रेम वासनात्मक है /था ॥

हम लोगो के साथ ऐसा तो नहीं
भले ही झुरियां उम्र की कहानी कहती हो
मगर .....
प्रेम का पौधा
जो हमलोगों ने लगाया था
शुभ -विवाह के दिन
आज भी लगता है
जैसे कल ही रोपा हो ॥

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Comment

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Comment by Rash Bihari Ravi on August 25, 2010 at 2:56pm
jai ho bahut kuch kah diya aapne,

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