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चंडी रूप धारण किए
आँखों में दहकते शोले लिए
मुख से ज्वालामुखी का लावा उगलती
बीच सड़क में
ना जाने वह किसे और क्यों
लगातार कोसे जा रही थी
सड़क पर आने जाने वाले सभी
उस अग्निकुंड की तपिश से
दामन बचा बचा कर निकल रहे थे
ना जाने क्यों सहसा ही .....
मुझ में साहस का संचार हुआ
मैंने पूछ ही लिया
बहना....,
क्या माजरा है ?
क्यों बीच सड़क में धधक रही हो ?
उसकी ज्वाला भरी आँखों से
गंगा यमुना की धार बह निकली
रुंधे गले से उसका दर्द फूट पड़ा ...
भय्या !!!
एक कलमुंहे की पोल खोल रही हूँ ,
क्या किया उसने ? मेरा सवाल था ..
बोली... अभी सुनाती हूँ
पूरी दास्तान ,
मेरा बेकार पति
हर वक़्त मेरा खून और दारू पीता था ,
हफ्ते में इसकी दो चार रातें
गुज़रती थी थाने में
मैं थाने जाती थी - इसको छुड़ाती थी,
पैसा तो था नहीं ..
बस ....दरोगा की हो जाती थी ,
सिलसिला चलता रहा ये कल तक ,
आज फिर मेरा बेकार पति थाने में बंद है
लेकिन वो दरोगा.......
आज मेरी जगह
मेरी बेटी को मांग रहा है वो कमबख्त,
आज
या तो मैं खुद को मिटा दूंगी
या इसके रक्त से खप्पर भरूँगी,
भले कुछ हो जाए,
इस रक्तबीज को जिंदा नहीं छोडूंगी

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Comment

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Comment by Shakur Khan on December 14, 2010 at 6:33pm

bah lajabab raur jabab naikhe guru ji

Comment by Rash Bihari Ravi on December 13, 2010 at 8:28pm

ok

Comment by Neet Giri on December 11, 2010 at 2:13pm

kamal kar diye

Comment by pankaj jha on September 3, 2010 at 2:11pm
guruji kamal ki rachana hai.....

samaaj ke pulisiya sosan ko jis rup me aap ne vyakhan kiya hai wo kabile tarif hai.

bahut khub.
Comment by Shakur Khan on September 2, 2010 at 12:51pm
sundar rachna guru jee
Comment by policestation on September 2, 2010 at 1:32am
BHoot Khub keha hai aapne. Shandar.
Comment by विवेक मिश्र on August 28, 2010 at 1:07pm
नारी यदि पृथ्वी की तरह सहनशील होती है, तो आवश्यकता पड़ने पर साक्षात माँ दुर्गे का अवतार भी ले सकती है. गुरु जी.. आपने समाज में फ़ैली गन्दगी का बड़ा ही सटीक चित्रण किया है. इस सजीव रचना हेतु मेरी शुभकामनायें स्वीकारें.
Comment by Rash Bihari Ravi on August 27, 2010 at 2:58pm
dhanyabad nilam ji, ganesh ji,ashish bhai , preetam babu,renu ji awam yograj bhaiya aap logo ko babut bahut dhanyabad ijajt afjai ke liye,
Comment by Neelam Upadhyaya on August 27, 2010 at 10:07am
Kya baat hai ! Ravi ji, bahut hi badhiya chitran kiya hai aapne. Kuchh bhi kah sakne ki sthiti mein nahi hoo. Rachna ke liye badhayee swikar kare.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 26, 2010 at 9:27am
बहुत खूब गुरु जी, बिलकुल यथार्थ बात है, एक औरत सब कुछ सह सकती है पर अपने बच्चो के
कष्ट को नही सह सकती है, और जब औरत चंडी रूप धारण करती है तो बड़े से बड़े चट्टान को भी रास्ता देना ही पड़ता है, अच्छी रचना हेतु बधाई,

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